
किसी भी काम की शुरुआत में ये नहीं सोचना चाहिए कि सफलता मिलेगी या नहीं, लक्ष्य पूरा होगा या नहीं। क्योंकि, कर्मों की सफलता या असफलता इंसान के हाथ में नहीं है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि तुम सिर्फ कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। जो लोग धर्म के अनुसार कर्म करते हैं, उन्हें सफलता जरूर मिलती है। ये बात महाभारत के एक प्रसंग से समझ सकते हैं...
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया तुम सिर्फ बेहतर कोशिश करो
दुर्योधन सभी पांडवों को मार देना चाहता था। इसीलिए उसने लाक्षागृह में पांडवों को मारने की योजना बनाई। लाक्षागृह के षड़यंत्र से किसी तरह सभी पांडव बच गए और वेश बदलकर वन में रहने लगे।
उस समय राजा द्रुपद ने राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर आयोजित किया था। इस आयोजन में पांडव में भी ब्राह्मणों के वेश में पहुंच गए। स्वयंवर में श्रीकृष्ण भी मौजूद थे और वे ब्राह्मण रूप में सभी पांडवों को पहचान गए।
स्वयंवर में शर्त रखी गई थी कि योद्धा को भूमि पर रखे पानी में देखकर छत पर घूम रही मछली की आंख पर निशाना लगाना है। जो योद्धा इस शर्त को पूरी कर देता, उससे द्रौपदी का विवाह होना था।
जब अर्जुन इस प्रतियोगिता में शामिल होने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि मछली की आंख में निशाना कैसे लगाना है, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पूरी विधि समझा दी। श्रीकृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन ने कहा कि अगर सबकुछ मुझे ही करना है तो आपकी क्या जरूरत है?
श्रीकृष्ण बोलें कि तुम सिर्फ वह करो जो तुम्हारे वश में है और मैं वह करूंगा जो तुम्हारे वश में नहीं है यानी मैं हिलते हुए पानी को स्थिर करूंगा, ताकि तुम्हें निशाना लगाने में परेशानी न हो। तुम सिर्फ बेहतर से बेहतर करने की कोशिश करो।
श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन में बेहतर कोशिश की और उसने मछली की आंख में निशाना लगा दिया।
इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें अच्छी से अच्छी कोशिश करनी चाहिए। कर्म करते समय फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। अगर फल हमारे पक्ष में नहीं आता है तो निराशा का सामना करना पड़ता है। अपना काम पूरी ईमानदारी से करेंगे तो सफलता जरूर मिलती है।
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Source From
RACHNA SAROVAR
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