August 2020

आज ही के दिन 1933 में उत्तरप्रदेश के बिजनौर में मशहूर कवि और गज़ल लेखक दुष्यंत कुमार का जन्म हुआ था। सिर्फ 42 साल की उम्र में हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हुआ। लेकिन इतनी कम उम्र में भी दुष्यंत ने ऐसी रचनाएं लिखीं कि अमर हो गए।

दुष्यंत की रचनाओं की खासियत थी उनका दायरा। कभी तो वे आपातकाल की पृष्ठभूमि में क्रांतिकारी अंदाज में लिखते “कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', तो कभी रोमांटिक अंदाज में कहते -“तू किसी रेल-सी गुजरती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं।”

दुष्यंत कुमार या दुष्यंत कुमार त्यागी शुरुआत में दुष्यंत कुमार परदेशी के नाम से लिखा करते थे। भोपाल उनकी कर्मभूमि रही। वे आपातकाल में संस्कृति विभाग में काम करते हुए भी सरकार के खिलाफ लिखते रहे। इसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ा।

  • 81 साल पहले दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ

1914 से 1918 तक पहला विश्वयुद्ध हुआ और कई संधियों के साथ खत्म हुआ था। लेकिन कई मुद्दे अनसुलझे थे, जिनकी वजह से अस्थिरता और तनाव कायम था। एक सितंबर 1939 को करीब 15 लाख सैनिकों के साथ एडॉल्फ हिटलर की जर्मन सेना ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस ने दो दिन बाद हिटलर की सेना पर जवाबी कार्रवाई की। 1939 से 1945 तक चला दूसरा विश्वयुद्ध करीब-करीब पूरी दुनिया में ही हुआ। इस विश्व युद्ध की धुरी बने थे जर्मनी, इटली और जापान। इनका मुकाबला करने के लिए फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ साथ आए थे। करीब 4 से 5 करोड़ लोग मारे गए थे। यह इतिहास का सबसे लंबे वक्त तक चला युद्ध है।

  • 64 साल पहले एलआईसी ने आकार लिया था

जनवरी 1956 को भारत सरकार ने उस समय देश में कारोबार कर रही 245 बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया था। अब इन कंपनियों को एक छत के नीचे लाने के लिए संगठन की जरूरत महसूस हो रही थी। तब जून 1956 में संसद में एलआईसी एक्ट पारित हुआ। इस तरह पांच करोड़ रुपए के फंड के साथ एक सितंबर 1956 को जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने आकार लिया। आज इसके लगभग 2048 कार्यालय देश के कोने-कोने में है। दस लाख से ज्यादा एजेंट वाला एलआईसी देश में होने वाले बीमा कारोबार में 77 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।

इतिहास के पन्नों में आज के दिन को इन घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…

  • 1807: अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति आरोन राजद्रोह के मामले में निर्दोष पाए गए।
  • 1878: एम्मा एम नट्ट अमेरिका में पहली महिला टेलीफोन ऑपरेटर बनीं।
  • 1947: भारतीय मानक समय अस्तित्व में आया।
  • 1962: महाराष्ट्र के कोल्हापुर में शिवाजी विद्यापीठ की स्थापना हुई।
  • 1994: उत्तरी आयरलैंड में आयरिन रिपब्लिकन आर्मी ने युद्ध विराम लागू किया।
  • 1997: साहित्यकार महाश्वेता देवी तथा पर्यावरणविद एमसी मेहता को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • 2005: सद्दाम हुसैन ने सशर्त रिहाई की अमेरिकी पेशकश ठुकराई।


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Birth of the popular Hindi poet Dushyant Kumar 87 years ago and the formal start of the Second World War.


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क्रिश्चियन कैरन. महमारी के कारण लाखों छात्र ऑनलाइन क्लासेज लेने को मजबूर हैं। ऐसे में छोटे बच्चों के माता-पिता के भी वर्चुअल लर्निंग के मामले में समय, शेड्यूल और टेक्नोलॉजी जैसे कई चीजों को लेकर परेशान हैं। ऐसे में एक सवाल जिसको लेकर ज्यादा चर्चा नहीं हुई, वह है प्राइवेसी। सवाल उठता है कि रिमोट लर्निंग कैसे हमारी प्राइवेसी को नुकसान पहुंचा रही है और इससे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट में लर्निंग टेक्नोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर टोरी ट्रस्ट ने कहा, "मेरे हिसाब से सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम क्लासरूम जैसी चीजों को वर्चुअल तरीके से दोहराने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने कहा- खासतौर से महामारी के दौरान यह सच है, जब कई सारे मानसिक तनाव झेलने वाले छात्रों को रिमोट लर्निंग के माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसे में सात एक्सपर्ट्स की मदद से जानिए कैसे बच्चों को सुरक्षित रखें।

बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करें
एजुकेशनल कंसल्टेंट और क्लिनिकल सोशल वर्कर जेन कोर्ट ने कहा, "यह पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करें। जानें कि उनके हिसाब से क्या निजी है और क्या नहीं।" उन्होंने कहा कि यह एक बार की जाने वाली चर्चा नहीं है। प्राइवेसी को लेकर सभी की एक आम समझ होती है। वो है कि किसी और के निजी जीवन में झांकना। हालांकि लोगों की प्राइवेसी की परिभाषा अलग-अलग होती है और इस बात पर निर्भर करती है कि वे कहां और किससे संपर्क में हैं। ऑनलाइन या ऑफलाइन।

पैरेंट्स बच्चों की प्राइवेसी से जुड़ी चिंताओं को जानने में जरूरी भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा अपनी चिंताओं को जाहिर करने में बच्चों की भी मदद करते हैं। फ्यूचर ऑफ प्राइवेसी फोरम यूथ एंड एजुकेशन प्राइवेसी की डायरेक्टर एमीलिया वेंस कहती हैं कि बच्चों को यह बताना चाहिए कि अगर वे ऑनलाइन लर्निंग में असहज महसूस कर रहे हैं तो टीचर्स या पैरेंट्स को इस बात की जानकारी दें।

बच्चों की चिंताओं के बारे में जानें
बच्चों को क्या चिंताएं हो सकती हैं इस बात को जानने के लिए समय दें। क्या वे इस बात से चिंतित हैं कि टीचर उनकी क्लास को रिकॉर्ड कर लेंगे। अगर ऐसा है तो उनकी रिकॉर्डिंग कितनी देर तक सुरक्षित तरीके से रखी जाएगी। क्या वे कैमरा या वॉट्सऐप पर नजर आने को लेकर घबरा रहे हैं। क्या वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि दूसरे छात्र क्लास का स्क्रीनशॉट लेंगे या उनके घर के बारे में क्या सोचेंगे।

वीडियो के जरिए पढ़ाई करने वाले बच्चे इस बात को लेकर भी चिंतित हो सकते हैं कि टीचर्स उनके हाल को देखकर क्या सोचेंगे। कोर्ट सलाह देती हैं कि टीचर्स को निजी तौर पर बच्चे के हालचाल लेने चाहिए, ताकि उन्हें पता लग सके कि वे बच्चों के हाव-भाव को सही तरीके से समझ पा रहे हैं।

कैमरा उपयोग को लेकर बात करें
बच्चों से क्लास के दौरान कैमरे के उपयोग को लेकर बात करें और उन्हें बताएं कि उनके पास कई ऑप्शन्स हैं। डॉक्टर ट्रस्ट ने कहा "बच्चों से उनका वीडियो शुरू करने के लिए कहना ठीक ऐसा ही है जैसे आप उनके घर में जा रहे हैं और बिना इजाजत के पढ़ा रहे हैं। टीचर्स और उनके साथी ऐसी चीजें देख सकते हैं जो बच्चे पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं।" उन्होंने कहा कि टीचर्स को छात्रों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने को लेकर सक्रिय होना होगा। वीडियो कैमरा शुरू करने को लेकर स्टूडेंट्स के साथ बातचीत भी होना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि कब वीडियो जरूरी हो सकता है और कब वे इसे बंद कर सकते हैं।

मानसिक परेशानी से जूझ रहे बच्चों को जरूरी है वीडियो ऑप्शन
ऐसा उन बच्चों के साथ जरूरी है, जो किसी चोट से गुजर रहे हैं। हो सकता है कि ये छात्र खुद को स्क्रीन पर देखकर असहज हो जाएं। फैकल्टी डेवलपमेंट और ऑनलाइन टीचिंग और लर्निंग स्पेशलिस्ट केरन कोस्टा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आमतौर पर मिरर व्यू को बंद करना मुमकिन होता है।

कोस्टा ने कहा "हम हमारे सभी सीखने वालों को यह चॉइस देना चाहते हैं कि वे कैमरे पर आना चाहते हैं या नहीं।" कोस्टा खासतौर से कॉलेज के छात्र और फैकल्टी को पढ़ाती हैं। अगर स्टूडेंट्स वीडियो पर नहीं आना चाहता और उनके स्कूल में चैट फोरम्स हैं तो ये चैट्स उन्हें लर्निंग में मदद कर सकती हैं। कोस्टा ने कहा "मैं चैट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करती हूं। अगर हम इसे बंद कर देंगे तो हम सीखने के कई कीमती मौकों को भी बंद कर देंगे।"

कैमरे के फायदों पर भी विचार करें
कैमरे का कब और कैसे इस्तेमाल करना है इस मामले में परिवारों को या तो सबकुछ या तो कुछ नहीं, जैसी सोच रखने की कोई जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए हो सकता है कि बच्चा ब्रेक सेशन के लिए कैमरा चालू रखना चाहता है, लेकिन दूसरी एक्टिविटीज के लिए बंद कर देता है।

बच्चे खुद का बैकग्राउंड तैयार कर सकते हैं
वीडियो फॉर्मेट में पढ़ाई की आदत डालने के लिए बच्चों को वन-ऑन-वन सेशन फायदेमंद होता है। या हो सकता है कि वे स्कूल की शुरुआत में कैमरे को बंद रखें, लेकिन बाद में शुरू कर दें। connectsafely.org में के-12 एजुकेशन के डायरेक्टर कैरी गैलेघर घर में एक स्पॉट तय करने की सलाह देती हैं, जहां बच्चा आसानी से रोज अपना स्कूल जारी रख सके।

जो बच्चे अपने घर को दिखाना नहीं चाहते वे डिजिटल बैकग्राउंड की मदद ले सकते हैं। इसके अलावा वे फैब्रिक या पोस्टर बोर्ड्स जैसे मटैरियल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। कैरी भी टीचर हैं और स्कूल में असिस्टेंट प्रिंसिपल हैं। वे बच्चों को वीडियो पर रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनका कहना है कि बच्चे के बॉडी लैंग्वेज और फेशियल एक्सप्रेशन्स की मदद से टीचर्स को यह जानने में मदद मिल सकती है कि बच्चा समझ पा रहा है या नहीं।

उन्होंने कहा "अगर मैं उनका चेहरा नहीं देख सकती तो मैं यह नहीं बता सकती की वे समझ पा रहे हैं या नहीं।" हालांकि, अगर कोई प्राइवेसी की चिंता है या बच्चा कैमरे के सामने कंफर्टेबल नहीं है तो कैरी पैरेंट्स को स्कूल में बात करने की सलाह देती हैं।

जानें बच्चा किन टूल्स को इस्तेमाल कर रहा है
मॉन्टक्लैयर में रहने वाली तीन बच्चों की मां ओल्गा गार्सिया काप्लान का कहना है, "मेरी सबसे बड़ी चिंता है कि स्कूल या टीचर्स ऐसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं जिसका निरीक्षण नहीं किया गया या बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है।" उन्होंने कलेक्ट की जा रही जानकारी को लेकर भी सवाल किए।

के-12 साइबर सिक्युरिटी रिसोर्स सेंटर के मुताबिक, 2016 से अब तक अमेरिका के स्कूलों में 900 साइबर सिक्युरिटी से जुड़े मामले सामने आए। ऑनलाइन लर्निंग कंसोर्टियम की सीईओ जैनिफर मैथेस ने कहा "पैरेंट्स के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि क्या जानकारी कलेक्ट की जा रही है औ इसके उपयोग के बारे में जानना उन्हें ज्यादा बेहतर फैसले लेने में मदद करेगा।"

अगर आपका बच्चा इतना बड़ा है कि खुद का फोन चला रहा है तो यह पक्का करें कि वे ऐसी किसी ऐप को डाउनलोड न करें जो स्कूल की स्कूल की जांच से न गुजरी हो। ऑनलाइन क्लासेज में पासवर्ड होना चाहिए और जिस तरह से टीचर पासवर्ड शेयर करते हैं वह सार्वजनिक नहीं होना चाहिए। यह जानना भी मददगार हो सकता है कि टीचर कैसे बच्चे की अटेंडेंस ले रहे हैं या प्रोग्रेस का ध्यान रख रहे हैं।

वेंस माता-पिता को बच्चों मजबूत पासवर्ड और डाटा ट्रैकिंग को रोकने वाले टूल्स का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। आखिरकार क्लास रूम में किसी भी नए टूल का उपयोग करने से पहले टीचर्स को टूल जांचने की प्रक्रिया को जानना चाहिए। वेंस ने कहा "अगर स्कूल के पास ऐसी कोई प्रोसेस नहीं है तो टीचर्स को हर टूल के डाटा कलेक्शन का रिव्यु करना चाहिए और यह पक्का करना चाहिए कि वे सरकार की गाइडलाइंस से मिलती और स्टूडेंट के लिए सुरक्षित हैं या नहीं।"



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According to experts - for safe remote learning, safe digital environment is necessary, children and parents should be cautious about privacy


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नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की ओर से दवा की कीमत तय करने के बाद भी यदि दवा कंपनियां इससे ज्यादा कीमत वसूल करती है तो इन कंपनियों का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता। ड्रग्स कंसलटेटिव कमेटी ने कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे लाइसेंस रद्द किया जा सके।

डीटीएबी ने भी लाइसेंस रद्द करने से इनकार किया था

इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) ने भी ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने से इनकार कर दिया था। संसद की स्थाई समिति ने अपनी 54वीं रिपोर्ट में कहा है कि दवा कंपनी यदि तय कीमत से ज्यादा पैसा वसूल करती हैं, या अपनी मर्जी से दवा की कीमत तय करती है तो इनसे ब्याज सहित जुर्माना वसूला जाए। जुर्माना नहीं देने पर कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पर विचार करें। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी कहा है यदि जरुरत पड़े तो ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में जरुरी बदलाव करें।

मनमाने तरीके से कीमत बढ़ाने वाली कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए

एनपीपीए का कहना है कि कीमत तय करने के बाद भी जिन कंपनियों ने दवा की कीमत बढ़ाई, ऐसी कंपनियों से जुर्माना वसूल करने के लिए 2083 नोटिस भेजे गए हैं। मार्च-2020 तक छह हजार 406 करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया गया है। लेकिन, सिर्फ 960 करोड़ रुपए की वसूली हो पाई है। वहीं चार हजार 33 करोड़ रुपए का मामला अदालत में चल रहा है। एनपीपीए के पास सिर्फ जुर्माना लगाने का अधिकार है।

एनपीपीए ऐसे तय करती है किसी दवा की कीमत

जब कोई कंपनी नई दवा लाती है, चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। उस कंपोजिशन की दवा जो पहले से बाजार में है, पांच कंपनियों की औसत कीमत निकालकर नई कंपनी की दवा की कीमत तय की जाती है। कुछ कंपनियां एनपीपीए को बताती ही नहीं हैं, और अपनी मर्जी से कीमत तय कर देती हैं। इसके अलावा नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशिएल मेडिसिन (एनईएलएम) की कीमत भी एनपीपीए तय करती है। एनपीपीए का कहना है कि दवाओं की कीमत तय या कैपिंग करके हर वर्ष उपभोक्ताओं का 12 हजार 447 करोड़ रुपए बचाया जाता है।



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जब कोई कंपनी नई दवा लाती है चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। (प्रतीकात्मक)


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स्कंद विवेक धर/शरद पाण्डेय. पॉवर डिमांड और वाहनों की बिक्री के आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है। अगर मांग अचानक पुराने स्तर पर पहुंची तो तुरंत आपूर्ति सुनिश्चित करना इंडस्ट्री के लिए बड़ी चुनौती होगी। जाने-माने बैंकर और उद्योग संगठन सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने दैनिक भास्कर के साथ इंटरव्यू में ये बात कही। उन्होंने कहा कि रेलवे के फ्रेट ट्रैफिक और पीक पॉवर डिमांड के आंकड़ों से यह साफ दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है।

एक और बड़ा सुधार ऑटोमोबइल सेक्टर में हो रहा है, जहां अगस्त महीने में पैसेंजर व्हीकल और दोपहिया गाड़ियों की बिक्री में वर्ष दर वर्ष आधार पर इजाफा होने की उम्मीद है। कुछ सेक्टरों ने वर्क फ्राॅम होम शुरू कर दिया है, लेकिन ज्यादातर सेक्टर में कर्मचारियों की उपस्थिति जरूरी है। 55 सेक्टर पर किए गए सीआईआई एसकॉन सर्वे के अनुसार जुलाई-सितंबर के बीच 55% उद्योगों के 50% से कम क्षमता के साथ काम करने का अनुमान है।

प्रस्तावित नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन इंडस्ट्री को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा और पीएलआई योजना से शुरुआती निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। ये सब कारण देश को नया मैन्युफैक्चरिंग हब बना सकते हैं। हालांकि, इसके लिए इंडस्ट्री और सरकार दोनों को कदम उठाने होंगे। भारत में पहले से ही बड़े पैमाने पर मैन्यूफैक्चरिंग होती है। हालांकि, मैन्युफैक्चरिंग स्केल कई गुना बढ़ाए जाने की संभावना अभी बनी हुई है। उन्होंने इंडस्ट्री से जुड़े इन सवालों के भी जवाब दिए...

कोरोना से क्या कोई सबक सीखने को मिला?

लॉकडाउन जरूरी था, हालांकि लोगाें की अजीविका का नुकसान हुआ है। इससे सीख मिली कि महत्वपूर्ण संसाधानों को इस तरह डिजाइन करना होगा, जिससे अजीविका सुरक्षित रहे और संक्रमण का खतरा कम हो।

क्या इंडस्ट्री ने रणनीति में कोई बदलाव किया है?

जी हां, इंडस्ट्री ने अपनी रणनीति बदल दी है। ज्यादातर कंपनियां फिजिकल ऑपरेशन से डिजिटल ऑपरेशन की ओर शिफ्ट हो रही हैं। तकनीकी आधारित निवेश जल्द ही एक ट्रेड के रूप में उभर सकता है।

उद्योग जगत की सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?

इंडस्ट्री को सरकार से ऐसी पार्टनरशिप की उम्मीद है, जिसमें वह इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट में सुधार के लिए इंडस्ट्री के सुझावों पर भरोसा कर सके। वहीं, इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे।

चीन से कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं?

इसके लिए इनपुट कास्ट और जमीन की कीमत कम करनी होगी। श्रमिकों को स्किल ट्रेनिंग देकर क्वालिटी और उपलब्धता में सुधार की जरूरत होगी। चीन से आयात में माल पर आयात शुल्क बढ़ाना भी बेहतर रणनीति का हिस्सा होगा।

देश को आत्मनिर्भर बनने में कितना समय लगेगा?

सभी सेक्टरों में आत्मनिर्भर बनना जरूरी नहीं है, लेकिन हमे कुछ सेक्टरों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, मेडिकल उपकरण और सुरक्षा मामलों पर फोकस करना चाहिए।



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इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे। (उदय कोटक)


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कोरोना की वजह से छात्र समुदाय बहुत परेशान है। अपनी शिक्षा पर बहुत समय, मेहनत और पैसा खर्च करने के बाद उन्हें अपनी योजनाएं बिगड़ती दिख रही हैं। साथ भी भविष्य अनिश्चित हो गया है। महामारी और फिर लॉकडाउन ने उनके सपनों को पीछे धकेल दिया है।

ऐसे में उन्हें इस असमंजस में डालना और भी बुरा है कि वे सेहत चुनें या अपना अकादमिक भविष्य। शर्मिंदगी की बात है कि अभी इसी स्थिति का सामना नेशनल एलिजिबिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) और जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) की तैयारी कर रहे छात्रों को करना पड़ रहा है, जिनकी परीक्षाएं इस महीने होनी हैं।

वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी भीड़ से बचना चाहिए

नीट और जेईई पहले अप्रैल और मई में होनी थीं, लेकिन दो बार आगे बढ़ाई जा चुकी हैं। इसका मतलब सरकार ने सोचा कि जब भारत में 50 हजार कोरोना मरीज थे, तब इन बड़ी परीक्षाओं को आगे बढ़ाना सही था, लेकिन अब जब कोरोना के मामले 36 लाख के पार जा चुके हैं, सरकार को परीक्षा हॉल में हजारों छात्रों की भीड़ इकट्‌ठा करना सही लग रहा है।

यह अतार्किक और खतरनाक है। कोविड-19 की वैज्ञानिक समझ कहती है कि मौजूदा स्थिति में बड़े आयोजन नहीं करने चाहिए, भीड़ से बचना चाहिए और वायरस को फैलने से रोकना चाहिए। यह स्वाभाविक है कि जनस्वास्थ्य के नाम पर नीट और जेईई वैयक्तिक रूप से नहीं होनी चाहिए।

केरल से भी कुछ सीख नहीं लिया

हमने पहले भी भीड़ का नतीजा देखा है, जब केरल इंजीनियरिंग, आर्किटेक्ट एंड मेडिकल (केईएएम) परीक्षाएं जुलाई में हुई थीं। मैंने संक्रमण फैलने के जोखिम को लेकर चिंता जताते हुए केरल के मुख्यमंत्री को चिट्‌ठी लिखी थी और परीक्षा आगे बढ़ाने का निवेदन किया था। मेरा निवेदन अस्वीकार किया गया और आपदा शुरू हो गई। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए प्रयास नहीं किए गए और परीक्षा में शामिल होने वालों की संख्या सीमित न करने के कारण केंद्रों पर भारी भीड़ रही। इससे वहां कोविड-19 मामलों में तेजी से बढ़त आई।

नीट-जेईई होने से भयावह स्थिति हो सकती है
नीट-जेईई तो और बड़े स्तर पर होंगी। करीब 25 लाख छात्र पंजीकृत हैं। इससे केईएएम परीक्षा के आयोजन से भी कई गुना बुरी और भयानक स्थिति का पूर्वाभास होता है। नीट-जेईई सितंबर में होनी ही नहीं चाहिए। इन्हें कम से कम नवंबर, दीवाली के बाद तक के लिए आगे बढ़ाना चाहिए था।
अगर आगे की यह तारीख व्यवहारिक नहीं लगती, तो सरकार का यह कहना सही है कि छात्रों पर पूरा अकादमिक वर्ष बर्बाद करने का दबाव नहीं बना सकते। ऐसे में मेरा मत है कि छात्रों और परीक्षा लेने वालों, दोनों के लिए ही व्यवहारिक, सुरक्षित और सम्मानजनक तरीका यह होगा कि परीक्षाएं घर से हों।

इससे छात्रों को अपने घर की सुरक्षा में परीक्षा देने मिलेगी। साथ ही परीक्षा केंद्रों पर भीड़ इकट्‌ठी नहीं होगी, जिसके कोरोना के ‘सुपर स्प्रैडर’ बनने की आशंका रहती है। जो छात्र किसी कारण से घर से परीक्षा नहीं दे सकते, सरकार को उनके लिए ऑनलाइन परीक्षा की सुविधा वाले टेस्टिंग सेंटर बनाने चाहिए थे। ऐसे छात्रों की संख्या कम ही होगी इसलिए ऐसे केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना आसान होगा और संक्रमण का जोखिम कम होगा।

स्वाभाविक है कि परीक्षा देने वाले के अकादमिक हुनर को आंकने के लिए परीक्षाओं को फिर से डिजाइन करना पड़ता, ताकि यह नई परिस्थितियों में सही बैठ पाएं। जिन कौशलों की जांच की जा रही है, वे सामान्य परीक्षा से अलग होंगे। इसमें छात्रों के घर में उपलब्ध अध्ययन और संदर्भ सामग्रियों को ध्यान में रखना होगा। इस परीक्षा को रटने पर आधारित परीक्षा से हटाकर छात्रों के तथ्यों को याद करने और तर्क तथा विश्लेषण की क्षमता पर लाना होगा।
यह बड़ा बदलाव शायद परीक्षा लेने वालों के लिए चुनौती हो, जो पीढ़ियों से एक ही तरह से परीक्षा ले रहे हैं। इससे छात्रों को भी कुछ परेशानी हो सकती है, जो पारंपरिक तरीकों से ही परीक्षा देते आए हैं। लेकिन इस महामारी ने हमें अपने सारे अनुमानों पर सवाल उठाने और बिल्कुल नए तरीके अपनाने पर मजबूर कर दिया है। अभी हमेशा की ही तरह काम करने में काफी जोखिम और समस्याएं हैं और नीट तथा जेईई के आयोजन में तो निश्चित तौर पर ऐसा ही है।

छात्रों ने कड़ी मेहनत की, अब उनके सेहत से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए
जैसा कि महामारी के पूरे विध्वंस के दौरान होता रहा है, परीक्षा के आयोजन की पहेली के लिए कोई सही समाधान नहीं है। हालांकि, घर से परीक्षा के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जिन हजारों-लाखों छात्रों ने अपने सपनों को हासिल करने के लिए इतनी कड़ी मेहनत की है, आखिरी समय में उनकी सेहत से समझौता न हो।

सरकार को अब भी इस स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करना चाहिए। महामारी के चरम पर अदूरदर्शी और बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले को सीखने की चाहत रखने वालों के उजले भविष्य के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहिए। हमें अपने देश की खातिर, अपने भविष्य के निर्माताओं और नायकों को सुरक्षित रखना चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


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अगर जो बाइडेन राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो उनकी सबसे बड़ी विदेश नीति चुनौती चीन होगा। लेकिन यह वह चीन नहीं होगा जिसका सामना उन्होंने बराक ओबामा के साथ किया था। यह ज्यादा आक्रामक चीन होगा, जो अमेरिका के तकनीक में प्रभुत्व को उखाड़ना चाहेगा, हांगकांग मे लोकतंत्र का दम घोंटेगा और आपका निजी डेटा चुराएगा।

वैश्विक व्यापार तंत्र को बिगाड़े बिना चीन को दबाने के लिए जर्मनी के साथ साझेदारी की जरूरत पड़ेगी, जिसे बनाने में ट्रम्प असफल रहे हैं। जी हां, आपने सही पढ़ा? सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध बर्लिन में लड़ा और जीता गया। और चीन के साथ भी व्यापार, तकनीक और वैश्विक प्रभाव पर शीत युद्ध बर्लिन में लड़ा और जीता जाएगा। जैसा बर्लिन करता है, वैसा ही जर्मनी करता है और जैसा जर्मनी करता है, वैसा ही यूरोपियन संघ करता है, जोकि दुनिया का सबसे बड़ा सिंगल मार्केट है। और जो भी देश यूरोपियन संघ को अपनी तरफ कर लेगा, वहीं 21वीं सदी में डिजिटल कॉमर्स के नियम तय करेगा।

चीन का सामना करने के लिए गठबंधन जरूरी

‘द राइज एंड फाल ऑफ पीस ऑन अर्थ’ के लेखक माइकल मंडेलबॉम कहते हैं, ‘पहले और दूसरे विश्वयुद्ध तथा शीत युद्ध में अमेरिका जीतने वाले पक्ष में था, क्योंकि हम मजबूत गठबंधन में थे। पहले विश्वयुद्ध से हम देर से जुड़े, दूसरे विश्वयुद्ध में कम देर से जुड़े। शीत युद्ध में सोवियत संघ को हराने का गठबंधन हमने बनाया। चीन का सामना करने के लिए हमें यही मॉडल अपनाना चाहिए था।’

अगर हम इसे केवल अमेरिका को महान बनाने के लिए चीन के खिलाफ खड़े होने की कहानी बना देंगे तो हम हार जाएंगे। अगर हम इसे दुनिया बनाम चीन की कहानी बनाएंगे तो हम बीजिंग को झुका सकते हैं। ट्रम्प ने चीन की अर्थव्यवस्था को स्थायी रूप से खोलने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। खबरों के मुताबिक, ‘डील के बाद से चीन ने अमेरिकी बैंंकों और किसानों के लिए अपने बाजार खोलने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन वह अमेरिकी उत्पाद खरीदने के मामले में अब भी बहुत पीछे है।’

चीन के लायक हैं राष्ट्रपति ट्रम्प

ट्रम्प चीन पर पिछले किसी भी राष्ट्रपति से ज्यादा सख्त रहे हैं, जो ठीक भी है। चीन में व्यापार करने वाला मेरा एक दोस्त कहता है, ‘ट्रम्प वे अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं हैं, जिसके लायक अमेरिका है। लेकिन वे वह राष्ट्रपति हैं, जिसके लायक चीन है।’

लेकिन मैं ‘चीन’ शब्द की जगह ‘130 करोड़ चीनी भाषी’ कहना पसंद करता हूं। क्योंकि, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले 130 करोड़ चीनी भाषियों का व्यवहार ट्रम्प की ‘अमेरिका-पहले-अमेरिका-अकेले’ रणनीति वाले 32.8 करोड़ लोग आसानी से नहीं बदल पाएंगे।

इसलिए मुझे लगता है कि ट्रम्प द्वारा चीन और जर्मनी पर विभिन्न मुद्दों के लिए एक साथ प्रहार करना ठीक नहीं है। ट्रम्प को चांसलर एंगेला मर्केल के साथ साझेदारी को प्राथमिकता देनी चाहिए थी, जो चीन की गुंडागर्दी को लेकर हमारी ही तरह चिंतित हैं। जर्मनी मैन्यूफैक्चरिंग सुपरपॉवर है, जो चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध में महत्वपूर्ण सहयोगी साबित हो सकता है।

जर्मनी के लोग अमेरिका के साथ संबंधों को ज्यादा तवज्जो दे रहे

अब ट्रम्प भी वहां से अपने कुछ सैनिक वापस बुलाकर जर्मनी पर जोर दे रहे हैं। इसका नतीजा है कि मई 2019 में प्यू रिसर्च ने बताया कि जर्मनी के लोग चीन की तुलना में अमेरिका के साथ संबंधों को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। आज 37% जर्मन अमेरिका के साथ संबंधों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जबकि 36% चीन को। राष्ट्रपति बनने पर ट्रम्प ने ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी समझौता खत्म कर दिया, जिसने अमेरिका के हित में 21वीं सदी के मुक्त व्यापार नियम तय किए थे और जिसमें चीन को छोड़कर 12 बड़ी पैसिफिक अर्थव्यवस्थाएं शामिल थीं। और अब वे जर्मनी के साथ संबंधों को कमजोर कर रहे हैँ।

इस सबके बीच ट्रम्प के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पिओ ने घोषणा कर दी, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से आजादी हमारा मिशन है और अब हम चीन को कमजोर करने के लिए समान सोच रखने वाले लोकतंत्रों के साथ गठजोड़ कर नया समूह बनाएंगे।’ यह सुनकर मैं नि:शब्द हो गया।

बिना सहयोगियों के गठबंधन बनाना मुश्किल है। अगर वाकई में यह हमारा ‘मिशन’ है, तो आप रूस को लक्ष्य करने के लिए जर्मन डिफेंस द्वारा किए जा रहे खर्च के खिलाफ छोटी-छोटी शिकायत करना बंद क्यों नहीं कर देते? यह सच है कि यूरोपीय संघ के देश वाशिंगटन और बीजिंग के बीच जारी गोलीबारी में फंसने और अमेरिकी या चीनी टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम में से किसी एक को चुनने को लेकर सजग हैं। हालांकि पिछले साल यूरोपीय संघ ने चीन को ‘प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी’ बताया था।

चीन जिस चीज से सबसे ज्यादा डरता है, ट्रम्प ने उसे ही बनाने से इनकार कर दिया है। यानी वाशिंगटन और बर्लिन के इर्द-गिर्द बनाया गया अमेरिका और यूरोपियन यूनियन का संयुक्त गठबंधन, जिसमें ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी शामिल है। सोवियत संघ को रोकने के लिए 1970 के दशक में रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसिंगर की सबसे अच्छी चाल थी अमेरिका और चीन का गठबंधन बनाना। आज चीन को संतुलित करने के लिए सबसे अच्छी चाल होगी अमेरिका और जर्मनी के बीच गठबंधन बनाना। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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चेन्नई सुपर किंग्स से जुड़े 13 सदस्यों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद फ्रेंचाइजी के दूसरे खिलाड़ी परेशान हैं। सुरेश रैना पहले ही घर लौट चुके हैं। हरभजन सिंह के भी खेलने पर संशय है। वे मंगलवार को दुबई जाने वाले हैं। हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। इस बीच, सीएसके के ऑस्ट्रेलियन तेज गेंदबाज जोश हेजलवुड भी चिंतित हैं। लीग के ब्रॉडकास्टर का एक क्रू मेंबर पॉजिटिव आया है।

हर फ्रेंचाइजी 46 करोड़ के नुकसान का मुआवजा मांग रही, बोर्ड का इनकार

कोरोना के कारण मैच बिना फैंस के खेले जाने हैं। स्पाॅन्सर से मिलने वाली राशि में भी कमी आई है। ऐसे में सभी फ्रेंचाइजी बोर्ड से मुआवजा मांग रही हैं। हर टीम को लगभग 46 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। लेकिन, बोर्ड ने इससे इनकार किया है।

बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, ‘फ्रेंचाइजीज का मुआवजे के बारे में सोचना मूर्खतापूर्ण है। अगर लीग नहीं होती तो उन्हें कुछ नहीं मिलता। आयोजन के लिए विभिन्न एजेंसियों को पैसा कौन दे रहा है। मैच ऑपरेशन का खर्च कौन उठा रहा है।’

इस अफसर ने आगे कहा, ‘हमने साफ कर दिया है कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। टीमें दबाव बना रही हैं। क्या वे पैसे नहीं कमा रहीं। हर टीम लगभग 150 करोड़ कमाएगी। उनकी मांग ठीक नहीं है।’ राज्य संघ के एक सदस्य ने कहा, ‘इस तरह की बातें फ्रेंचाइजी से नहीं की जा रही हैं। बोर्ड का एक व्यक्ति निजी कारणों से इन बातों को उकसा रहा है।’



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हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। (फाइल)


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देश में ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के मुताबिक, अभी देश में करीब 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं। रिपोर्ट्स के मानें तो 2022 तक इनकी संख्या 44 करोड़ तक पहुंच जाएगी। ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू भी 22% की रफ्तार से बढ़ रहा है।

गेमिंग का गणित

2023 तक रेवेन्यू 11 हजार 400 करोड़ रु. तक बढ़ने का अनुमान है। यह 2014 की तुलना में करीब 3 गुना है। तब रेवेन्यू 4400 करोड़ रु. था। दुनिया के गेमिंग मार्केट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हिस्सेदारी एशिया-पैसिफिक की है। दुनिया ने 2019 में 11.25 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। इसमें एशिया-पैसिफिक रीजन ने 5.34 लाख करोड़ रुपए की कमाई की।

2024 तक 4 गुना बढ़ जाएगी वैल्यू

  • ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है।
  • दुनिया में सबसे ज्यादा रेवेन्यू जनरेट करने वाला देश अमेरिका है। उसने 2.7 लाख करोड़ रु. कमाई की। चीन (2.2 लाख करोड़) दूसरे पर है।
  • 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं देश में। 2022 तक 44 करोड़ हो जाएंगे।
  • 60% से ज्यादा ऑनलाइन गेमर 24 साल से कम उम्र के हैं अभी देश में।
  • 55 मिनट औसत टाइम स्पेंड करता है एक ऑनलाइन गेमर प्रतिदिन।
  • 800 एमबी डेटा खर्च कर देता है एक गेमर प्रतिदिन गेम खेलने के दौरान।


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ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है। (प्रतीकात्मक)


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2 सितंबर बुधवार से पितृपक्ष शुरू हो जाएगा। कोरोना महामारी के कारण मोक्षनगरी गया में पितृपक्ष का मेला स्थगित होने के बाद अब यहां ऑनलाइन पिंडदान भी नहीं होगा। यहां सिर्फ आम दिनों की तरह ही पिंडदान होंगे। वह भी इसलिए ताकि एक पिंड और एक मुंड की परंपरा कायम रहे।

ऐसे तो परंपरा ही खत्म हो जाएगी

गया के पंडों ने ई-पिंडदान का यह कहकर विरोध किया है कि अगर यह प्रथा शुरू हुई तो लोग तीर्थस्थलों में आना बंद कर देंगे। प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा खत्म हो जाएगी। कोई भी पुरोहित नहीं रह जाएंगे। हर कोई इसके नाम पर बिजनेस करने लगेगा। इसलिए हमने करीब 700 ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं। इस फैसले के समर्थन में दक्षिण भारत के पुरोहितों के अलावा गया इस्कॉन समेत 50 से अधिक संस्थाओं ने सभी ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं।

हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे

बिहार पर्यटन विभाग ने भी बुकिंग नहीं की है। इधर, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश गुपुत ने बताया कि ई-पिंडदान जैसी प्रथा को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। अखिल भारतीय पुरोहित महासभा ने भी ऑनलाइन पिंडदान का विरोध किया है।

कोरोना काल के चलते पितृपक्ष में ऐसा पहली बार होगा, जब फल्गु नदी के तट पर देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृतियों की झलक देखने को नहीं मिलेगी। इस्कॉन मंदिर के प्रबंधक जगदीश श्याम दास महाराज ने बताया कि उनके पास करीब 10 तीर्थयात्रियों ने ऑनलाइन पिंडदान के लिए संपर्क किया था, लेकिन पंडों के साफ इनकार करने के बाद सभी बुकिंग को रद्द कर दिया गया। इधर, दक्षिण भारत के तीर्थयात्रियों ने भी एक संस्था के जरिए ऑनलाइन पिंडदान की बुकिंग कराई थी। लेकिन पंडाें का कड़ा रुख देखते हुए इन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए।

अपने हाथों पिंडदान से पितरों को मोक्ष मिलता है, गया आना ही होगा

गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। ऑनलाइन दर्शन पर जब हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया, तो ऑनलाइन पिंडदान कैसे हो सकता है? पिंडदान के लिए गया आना ही होगा, तभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। अपने हाथों पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। ऑनलाइन के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है।



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गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। (फाइल)


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लद्दाख में चीन की घुसपैठ की साजिश के बीच सेना को मजबूत करने के लिए देश के रक्षा मंत्रालय ने बड़ा करार किया है। मंत्रालय ने छह सैन्य रेजीमेंट के लिए 2580 करोड़ रुपए की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदने को लेकर सोमवार को दो अग्रणी घरेलू रक्षा कंपनियों के साथ समझौता किया।

इसके लिए टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (टीपीसीएल) और लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) के साथ अनुबंध पर दस्तखत किए हैं। जबकि रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) को भी इस परियोजना का हिस्सा बनाया गया है।

चीन-पाकिस्तान सीमा पर तैनात किए जाएंगे

अफसरों ने बताया कि पिनाका रेजीमेंट को सैन्य बलों की संचालन तैयारियां बढ़ाने को चीन-पाकिस्तान के साथ लगती भारतीय सीमा पर तैनात किया जाएगा। बीईएमएल ऐसे वाहनों की आपूर्ति करेगी जिस पर रॉकेट लॉन्चर को रखा जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लॉन्चर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। मिसाइल रेजीमेंट का संचालन 2024 तक शुरू करने की योजना है।



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रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लांचर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। (फाइल)


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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के पास बैलेट से वोट करने का विकल्प है। देश के 50 में से 35 राज्यों में वोटर चुनाव के इतने करीब तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं कि उसका समय से चुनाव अधिकारी के पास वापस पहुंचना संभव नहीं है।

इनके पास आवेदन करने और अधिकारी तक बैलेट पहुंचने में 12 या उससे कम दिन का समय रहेगा। पोस्टल सर्विस की तरफ से कहा गया है कि दोनों तरफ की डिलीवरी में 14 दिनों तक का समय लग सकता है। 2018 के मध्यावधि चुनाव के दौरान करीब एक लाख 14 हजार वोटों को देरी से आने की वजह से रद्द किया गया था।

हालांकि, अगर वोटर अंतिम समय का इंतजार नहीं करते हैं तो उनके पास बैलेट से वोट करने के लिए पर्याप्त समय होगा। नॉर्थ कैरोलिना में 4 सितंबर से बैलेट भेजने शुरुआत होगी। लोगों के पास पूरे 60 दिनों का समय रहेगा। अलबामा में 9 जबकि केंटकी में 15 सितंबर से प्रक्रिया शुरू होगी।

मिनेसोटा में एक दिन पहले तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं

  • 16 राज्य में बैलेट के लिए आवेदन करने और उसे वापस पहुंचने के लिए 6 या कम दिनों का समय मिलेगा। जॉर्जिया, अलबामा, जैसे राज्य शामिल।
  • 19 राज्य में 12 दिनों तक का समय रहेगा। बैलेट के आवेदक तक पहुंचने में 6 दिन तक का समय लग सकता है। फ्लोरिडा, वर्जीनिया जैसे राज्य।
  • 6 राज्य में इस प्रक्रिया के लिए 14 या उससे ज्यादा दिनों का समय रहेगा। न्यू मैक्सिको, अलास्का, लोवा, न्यूयॉर्क, मैरिलैंड और रोड आईलैंड शामिल।
  • 9 राज्य के सभी रजिस्टर वोटरों को बिना आवेदन के बैलेट भेजे जाएंगे। इसमें नेवादा, कैलिफोर्निया, कोलोरैडो, वॉशिंगटन जैसे राज्य शामिल हैं।

चुनाव के दिन ही आते हैं सबसे ज्यादा बैलेट

चुनाव के दिन अधिकारियों के पास 20% तक बैलेट आते हैं। अगले दिन भी भारी मात्रा में बैलेट पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है, लेकिन इन्हें रद्द करना पड़ता है। पूर्व चुनाव अधिकारी मिस पैट्रिक्स ने बताया कि लोकल चुनाव अधिकारियों के लिए बड़े तादाद में बैलेट को संभालना बड़ी चुनौती होती है।



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इस बार चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन के बीच मुकाबला है। (फाइल)


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लद्दाख में चीन की घुसपैठ की साजिश के बीच सेना को मजबूत करने के लिए देश के रक्षा मंत्रालय ने बड़ा करार किया है। मंत्रालय ने छह सैन्य रेजीमेंट के लिए 2580 करोड़ रुपए की लागत से पिनाका रॉकेट लॉन्चर खरीदने को लेकर सोमवार को दो अग्रणी घरेलू रक्षा कंपनियों के साथ समझौता किया।

इसके लिए टाटा पावर कंपनी लिमिटेड (टीपीसीएल) और लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) के साथ अनुबंध पर दस्तखत किए हैं। जबकि रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) को भी इस परियोजना का हिस्सा बनाया गया है।

चीन-पाकिस्तान सीमा पर तैनात किए जाएंगे

अफसरों ने बताया कि पिनाका रेजीमेंट को सैन्य बलों की संचालन तैयारियां बढ़ाने को चीन-पाकिस्तान के साथ लगती भारतीय सीमा पर तैनात किया जाएगा। बीईएमएल ऐसे वाहनों की आपूर्ति करेगी जिस पर रॉकेट लॉन्चर को रखा जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 6 पिनाका रेजीमेंट में ‘ऑटोमेटेड गन एमिंग एंड पोजिशनिंग सिस्टम’के साथ 114 लॉन्चर, 45 कमान पोस्ट भी होंगे। मिसाइल रेजीमेंट का संचालन 2024 तक शुरू करने की योजना है।



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2 सितंबर बुधवार से पितृपक्ष शुरू हो जाएगा। कोरोना महामारी के कारण मोक्षनगरी गया में पितृपक्ष का मेला स्थगित होने के बाद अब यहां ऑनलाइन पिंडदान भी नहीं होगा। यहां सिर्फ आम दिनों की तरह ही पिंडदान होंगे। वह भी इसलिए ताकि एक पिंड और एक मुंड की परंपरा कायम रहे।

ऐसे तो परंपरा ही खत्म हो जाएगी

गया के पंडों ने ई-पिंडदान का यह कहकर विरोध किया है कि अगर यह प्रथा शुरू हुई तो लोग तीर्थस्थलों में आना बंद कर देंगे। प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा खत्म हो जाएगी। कोई भी पुरोहित नहीं रह जाएंगे। हर कोई इसके नाम पर बिजनेस करने लगेगा। इसलिए हमने करीब 700 ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं। इस फैसले के समर्थन में दक्षिण भारत के पुरोहितों के अलावा गया इस्कॉन समेत 50 से अधिक संस्थाओं ने सभी ऑनलाइन बुकिंग रद्द कर दी हैं।

हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे

बिहार पर्यटन विभाग ने भी बुकिंग नहीं की है। इधर, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश गुपुत ने बताया कि ई-पिंडदान जैसी प्रथा को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे। अखिल भारतीय पुरोहित महासभा ने भी ऑनलाइन पिंडदान का विरोध किया है।

कोरोना काल के चलते पितृपक्ष में ऐसा पहली बार होगा, जब फल्गु नदी के तट पर देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृतियों की झलक देखने को नहीं मिलेगी। इस्कॉन मंदिर के प्रबंधक जगदीश श्याम दास महाराज ने बताया कि उनके पास करीब 10 तीर्थयात्रियों ने ऑनलाइन पिंडदान के लिए संपर्क किया था, लेकिन पंडों के साफ इनकार करने के बाद सभी बुकिंग को रद्द कर दिया गया। इधर, दक्षिण भारत के तीर्थयात्रियों ने भी एक संस्था के जरिए ऑनलाइन पिंडदान की बुकिंग कराई थी। लेकिन पंडाें का कड़ा रुख देखते हुए इन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए।

अपने हाथों पिंडदान से पितरों को मोक्ष मिलता है, गया आना ही होगा

गया के पुरोहितों का कहना है कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है। यह शास्त्र के अनुकूल नहीं है। ऑनलाइन दर्शन पर जब हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया, तो ऑनलाइन पिंडदान कैसे हो सकता है? पिंडदान के लिए गया आना ही होगा, तभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। अपने हाथों पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। ऑनलाइन के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है।



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स्कंद विवेक धर/शरद पाण्डेय. पॉवर डिमांड और वाहनों की बिक्री के आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है। अगर मांग अचानक पुराने स्तर पर पहुंची तो तुरंत आपूर्ति सुनिश्चित करना इंडस्ट्री के लिए बड़ी चुनौती होगी। जाने-माने बैंकर और उद्योग संगठन सीआईआई के अध्यक्ष उदय कोटक ने दैनिक भास्कर के साथ इंटरव्यू में ये बात कही। उन्होंने कहा कि रेलवे के फ्रेट ट्रैफिक और पीक पॉवर डिमांड के आंकड़ों से यह साफ दिख रहा है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है।

एक और बड़ा सुधार ऑटोमोबइल सेक्टर में हो रहा है, जहां अगस्त महीने में पैसेंजर व्हीकल और दोपहिया गाड़ियों की बिक्री में वर्ष दर वर्ष आधार पर इजाफा होने की उम्मीद है। कुछ सेक्टरों ने वर्क फ्राॅम होम शुरू कर दिया है, लेकिन ज्यादातर सेक्टर में कर्मचारियों की उपस्थिति जरूरी है। 55 सेक्टर पर किए गए सीआईआई एसकॉन सर्वे के अनुसार जुलाई-सितंबर के बीच 55% उद्योगों के 50% से कम क्षमता के साथ काम करने का अनुमान है।

प्रस्तावित नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन इंडस्ट्री को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा और पीएलआई योजना से शुरुआती निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। ये सब कारण देश को नया मैन्युफैक्चरिंग हब बना सकते हैं। हालांकि, इसके लिए इंडस्ट्री और सरकार दोनों को कदम उठाने होंगे। भारत में पहले से ही बड़े पैमाने पर मैन्यूफैक्चरिंग होती है। हालांकि, मैन्युफैक्चरिंग स्केल कई गुना बढ़ाए जाने की संभावना अभी बनी हुई है। उन्होंने इंडस्ट्री से जुड़े इन सवालों के भी जवाब दिए...

कोरोना से क्या कोई सबक सीखने को मिला?

लॉकडाउन जरूरी था, हालांकि लोगाें की अजीविका का नुकसान हुआ है। इससे सीख मिली कि महत्वपूर्ण संसाधानों को इस तरह डिजाइन करना होगा, जिससे अजीविका सुरक्षित रहे और संक्रमण का खतरा कम हो।

क्या इंडस्ट्री ने रणनीति में कोई बदलाव किया है?

जी हां, इंडस्ट्री ने अपनी रणनीति बदल दी है। ज्यादातर कंपनियां फिजिकल ऑपरेशन से डिजिटल ऑपरेशन की ओर शिफ्ट हो रही हैं। तकनीकी आधारित निवेश जल्द ही एक ट्रेड के रूप में उभर सकता है।

उद्योग जगत की सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?

इंडस्ट्री को सरकार से ऐसी पार्टनरशिप की उम्मीद है, जिसमें वह इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट में सुधार के लिए इंडस्ट्री के सुझावों पर भरोसा कर सके। वहीं, इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे।

चीन से कैसे प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं?

इसके लिए इनपुट कास्ट और जमीन की कीमत कम करनी होगी। श्रमिकों को स्किल ट्रेनिंग देकर क्वालिटी और उपलब्धता में सुधार की जरूरत होगी। चीन से आयात में माल पर आयात शुल्क बढ़ाना भी बेहतर रणनीति का हिस्सा होगा।

देश को आत्मनिर्भर बनने में कितना समय लगेगा?

सभी सेक्टरों में आत्मनिर्भर बनना जरूरी नहीं है, लेकिन हमे कुछ सेक्टरों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, मेडिकल उपकरण और सुरक्षा मामलों पर फोकस करना चाहिए।



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इंडस्ट्रीज से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सरकार की ओर से सुझावों को स्वीकारे और अमल के बाद निवेश करे। (उदय कोटक)


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नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) की ओर से दवा की कीमत तय करने के बाद भी यदि दवा कंपनियां इससे ज्यादा कीमत वसूल करती है तो इन कंपनियों का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता। ड्रग्स कंसलटेटिव कमेटी ने कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे लाइसेंस रद्द किया जा सके।

डीटीएबी ने भी लाइसेंस रद्द करने से इनकार किया था

इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) ने भी ऐसी कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने से इनकार कर दिया था। संसद की स्थाई समिति ने अपनी 54वीं रिपोर्ट में कहा है कि दवा कंपनी यदि तय कीमत से ज्यादा पैसा वसूल करती हैं, या अपनी मर्जी से दवा की कीमत तय करती है तो इनसे ब्याज सहित जुर्माना वसूला जाए। जुर्माना नहीं देने पर कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने पर विचार करें। स्वास्थ्य मंत्रालय से भी कहा है यदि जरुरत पड़े तो ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स में जरुरी बदलाव करें।

मनमाने तरीके से कीमत बढ़ाने वाली कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए

एनपीपीए का कहना है कि कीमत तय करने के बाद भी जिन कंपनियों ने दवा की कीमत बढ़ाई, ऐसी कंपनियों से जुर्माना वसूल करने के लिए 2083 नोटिस भेजे गए हैं। मार्च-2020 तक छह हजार 406 करोड़ रुपए से ज्यादा का जुर्माना किया गया है। लेकिन, सिर्फ 960 करोड़ रुपए की वसूली हो पाई है। वहीं चार हजार 33 करोड़ रुपए का मामला अदालत में चल रहा है। एनपीपीए के पास सिर्फ जुर्माना लगाने का अधिकार है।

एनपीपीए ऐसे तय करती है किसी दवा की कीमत

जब कोई कंपनी नई दवा लाती है, चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। उस कंपोजिशन की दवा जो पहले से बाजार में है, पांच कंपनियों की औसत कीमत निकालकर नई कंपनी की दवा की कीमत तय की जाती है। कुछ कंपनियां एनपीपीए को बताती ही नहीं हैं, और अपनी मर्जी से कीमत तय कर देती हैं। इसके अलावा नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशिएल मेडिसिन (एनईएलएम) की कीमत भी एनपीपीए तय करती है। एनपीपीए का कहना है कि दवाओं की कीमत तय या कैपिंग करके हर वर्ष उपभोक्ताओं का 12 हजार 447 करोड़ रुपए बचाया जाता है।



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जब कोई कंपनी नई दवा लाती है चाहे वही दवा किसी अन्य कंपनी की बाजार में हो तो उसकी कीमत एनपीपीए तय करती है। (प्रतीकात्मक)


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एक अनजानी आशंका लोगों को परेशान कर रही थी, लेकिन लोगों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था। उनको शायद किसी चमत्कार की उम्मीद थी। लेकिन, सोमवार सुबह जब प्रणब मुखर्जी की हालत बिगड़ने की जानकारी मिली तो इन लोगों में निराशा फैलने लगी। शाम को प्रणब मुखर्जी के निधन की खबर आई। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति के बीरभूम जिले के मिराटी गांव में मातम और सन्नाटा पसर गया।

इस गांव के लोग एक पूर्व राष्ट्रपति नहीं, बल्कि एक अभिभावक और एक ऐसे मित्र के निधन का शोक मना रहे हैं जो आधी रात को भी सबकी समस्याएं सुन कर उनकी मदद के लिए तैयार रहता था। प्रणब का जन्म इसी गांव में हुआ था।

स्वस्थ होने की कामना के लिए यज्ञ
प्रणब मुखर्जी के बीमार होने के बाद इन दोनों गांवों में लोगों ने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ यज्ञ आयोजित किया था। प्रणब के गांव में रहने वाले प्राथमिक स्कूल के शिक्षक कनिष्क चटर्जी कहते हैं, "उनके बीमार होने की खबर मिलने के बाद ही मन खराब हो गया था। लेकिन, हमें उम्मीद थी कि वह मौत को मात देकर लौट आएंगे। ऐसा हो नहीं सका।"

कनिष्क कहते हैं- देश के शीर्ष पद पर पहुंचने के बावजूद प्रणब अपनी जड़ों को नहीं भूले। जब भी मौका मिलता, वे यहां जरूर आते। उनको देख कर कहीं से भी नहीं लगता था कि यह व्यक्ति देश का राष्ट्रपति है। वे ज्यादातर लोगों को नाम से पहचानते थे।

भारत रत्न मिला तो गांव ने खुशियां मनाईं
पिछले साल अगस्त में प्रणब को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। गांव में खुशियां मनाई गईं। पूर्व राष्ट्रपति के करीबी रहे प्रियरंजन घोष कहते हैं, “हम बीते साल अपने गांव के इस लाल के सम्मान से बेहद खुश हुए थे। तब कौन जानता था कि महज एक साल के भीतर वे हमसे हमेशा के लिए जुदा हो जाएंगे। उनकी वजह से हमारे गांव का नाम विदेश तक लोग जानते थे।”

मिराटी गांव में महामृत्युंजय जाप भी कराया गया था।

प्रणब जैसा दोस्त मिलना मुश्किल
केंद्रीय मंत्री रहते प्रणब हर साल दुर्गापूजा के दौरान अपने घर में पूजा करते थे। षष्ठी से लेकर दशमी तक। बाद में राष्ट्रपति बनने पर भी यह सिलसिला 2015 तक जारी रहा था। उनके घर चालीस साल से दुर्गापूजा का आयोजन होता रहा। मुखर्जी इस लंबे अरसे में सिर्फ दो बार ही गांव नहीं आ सके थे। अब उनके निधन से गांव में होने वाली दुर्गापूजा भी अनिश्चित हो गई है।

प्रणब के बचपन के साथी बलदेव राय और नीहार रंजन बनर्जी कहते हैं, “प्रणब जैसा दोस्त होना मुश्किल है। उनको अपने पद का जरा भी अभिमान नहीं था। गांव आने पर हमसे उसी तरह मिलते-बोलते थे, जैसे हम बचपन में साथ खेलते और बात करते थे।”

प्रणब के पारिवारिक मित्र रहे रवि चटर्जी बताते हैं- हमने उनके स्वस्थ होने की कामना के साथ गांव में महामृत्युंजय जाप कराया था। हमें चमत्कार की उम्मीद थी। अफसोस...ऐसा नहीं हो सका।

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प्रणब मुखर्जी के गांव मिराटी में उनके शीघ्र स्वस्थ होने के लिए विशेष पूजा की गई थी।


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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के पास बैलेट से वोट करने का विकल्प है। देश के 50 में से 35 राज्यों में वोटर चुनाव के इतने करीब तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं कि उसका समय से चुनाव अधिकारी के पास वापस पहुंचना संभव नहीं है।

इनके पास आवेदन करने और अधिकारी तक बैलेट पहुंचने में 12 या उससे कम दिन का समय रहेगा। पोस्टल सर्विस की तरफ से कहा गया है कि दोनों तरफ की डिलीवरी में 14 दिनों तक का समय लग सकता है। 2018 के मध्यावधि चुनाव के दौरान करीब एक लाख 14 हजार वोटों को देरी से आने की वजह से रद्द किया गया था।

हालांकि, अगर वोटर अंतिम समय का इंतजार नहीं करते हैं तो उनके पास बैलेट से वोट करने के लिए पर्याप्त समय होगा। नॉर्थ कैरोलिना में 4 सितंबर से बैलेट भेजने शुरुआत होगी। लोगों के पास पूरे 60 दिनों का समय रहेगा। अलबामा में 9 जबकि केंटकी में 15 सितंबर से प्रक्रिया शुरू होगी।

मिनेसोटा में एक दिन पहले तक बैलेट के लिए आवेदन कर सकते हैं

  • 16 राज्य में बैलेट के लिए आवेदन करने और उसे वापस पहुंचने के लिए 6 या कम दिनों का समय मिलेगा। जॉर्जिया, अलबामा, जैसे राज्य शामिल।
  • 19 राज्य में 12 दिनों तक का समय रहेगा। बैलेट के आवेदक तक पहुंचने में 6 दिन तक का समय लग सकता है। फ्लोरिडा, वर्जीनिया जैसे राज्य।
  • 6 राज्य में इस प्रक्रिया के लिए 14 या उससे ज्यादा दिनों का समय रहेगा। न्यू मैक्सिको, अलास्का, लोवा, न्यूयॉर्क, मैरिलैंड और रोड आईलैंड शामिल।
  • 9 राज्य के सभी रजिस्टर वोटरों को बिना आवेदन के बैलेट भेजे जाएंगे। इसमें नेवादा, कैलिफोर्निया, कोलोरैडो, वॉशिंगटन जैसे राज्य शामिल हैं।

चुनाव के दिन ही आते हैं सबसे ज्यादा बैलेट

चुनाव के दिन अधिकारियों के पास 20% तक बैलेट आते हैं। अगले दिन भी भारी मात्रा में बैलेट पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है, लेकिन इन्हें रद्द करना पड़ता है। पूर्व चुनाव अधिकारी मिस पैट्रिक्स ने बताया कि लोकल चुनाव अधिकारियों के लिए बड़े तादाद में बैलेट को संभालना बड़ी चुनौती होती है।



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इस बार चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन के बीच मुकाबला है। (फाइल)


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क्रिश्चियन कैरन. महमारी के कारण लाखों छात्र ऑनलाइन क्लासेज लेने को मजबूर हैं। ऐसे में छोटे बच्चों के माता-पिता के भी वर्चुअल लर्निंग के मामले में समय, शेड्यूल और टेक्नोलॉजी जैसे कई चीजों को लेकर परेशान हैं। ऐसे में एक सवाल जिसको लेकर ज्यादा चर्चा नहीं हुई, वह है प्राइवेसी। सवाल उठता है कि रिमोट लर्निंग कैसे हमारी प्राइवेसी को नुकसान पहुंचा रही है और इससे बचने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट में लर्निंग टेक्नोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर टोरी ट्रस्ट ने कहा, "मेरे हिसाब से सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम क्लासरूम जैसी चीजों को वर्चुअल तरीके से दोहराने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने कहा- खासतौर से महामारी के दौरान यह सच है, जब कई सारे मानसिक तनाव झेलने वाले छात्रों को रिमोट लर्निंग के माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसे में सात एक्सपर्ट्स की मदद से जानिए कैसे बच्चों को सुरक्षित रखें।

बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करें
एजुकेशनल कंसल्टेंट और क्लिनिकल सोशल वर्कर जेन कोर्ट ने कहा, "यह पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि बच्चों से प्राइवेसी को लेकर बात करें। जानें कि उनके हिसाब से क्या निजी है और क्या नहीं।" उन्होंने कहा कि यह एक बार की जाने वाली चर्चा नहीं है। प्राइवेसी को लेकर सभी की एक आम समझ होती है। वो है कि किसी और के निजी जीवन में झांकना। हालांकि लोगों की प्राइवेसी की परिभाषा अलग-अलग होती है और इस बात पर निर्भर करती है कि वे कहां और किससे संपर्क में हैं। ऑनलाइन या ऑफलाइन।

पैरेंट्स बच्चों की प्राइवेसी से जुड़ी चिंताओं को जानने में जरूरी भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा अपनी चिंताओं को जाहिर करने में बच्चों की भी मदद करते हैं। फ्यूचर ऑफ प्राइवेसी फोरम यूथ एंड एजुकेशन प्राइवेसी की डायरेक्टर एमीलिया वेंस कहती हैं कि बच्चों को यह बताना चाहिए कि अगर वे ऑनलाइन लर्निंग में असहज महसूस कर रहे हैं तो टीचर्स या पैरेंट्स को इस बात की जानकारी दें।

बच्चों की चिंताओं के बारे में जानें
बच्चों को क्या चिंताएं हो सकती हैं इस बात को जानने के लिए समय दें। क्या वे इस बात से चिंतित हैं कि टीचर उनकी क्लास को रिकॉर्ड कर लेंगे। अगर ऐसा है तो उनकी रिकॉर्डिंग कितनी देर तक सुरक्षित तरीके से रखी जाएगी। क्या वे कैमरा या वॉट्सऐप पर नजर आने को लेकर घबरा रहे हैं। क्या वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि दूसरे छात्र क्लास का स्क्रीनशॉट लेंगे या उनके घर के बारे में क्या सोचेंगे।

वीडियो के जरिए पढ़ाई करने वाले बच्चे इस बात को लेकर भी चिंतित हो सकते हैं कि टीचर्स उनके हाल को देखकर क्या सोचेंगे। कोर्ट सलाह देती हैं कि टीचर्स को निजी तौर पर बच्चे के हालचाल लेने चाहिए, ताकि उन्हें पता लग सके कि वे बच्चों के हाव-भाव को सही तरीके से समझ पा रहे हैं।

कैमरा उपयोग को लेकर बात करें
बच्चों से क्लास के दौरान कैमरे के उपयोग को लेकर बात करें और उन्हें बताएं कि उनके पास कई ऑप्शन्स हैं। डॉक्टर ट्रस्ट ने कहा "बच्चों से उनका वीडियो शुरू करने के लिए कहना ठीक ऐसा ही है जैसे आप उनके घर में जा रहे हैं और बिना इजाजत के पढ़ा रहे हैं। टीचर्स और उनके साथी ऐसी चीजें देख सकते हैं जो बच्चे पर गलत प्रभाव डाल सकती हैं।" उन्होंने कहा कि टीचर्स को छात्रों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने को लेकर सक्रिय होना होगा। वीडियो कैमरा शुरू करने को लेकर स्टूडेंट्स के साथ बातचीत भी होना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि कब वीडियो जरूरी हो सकता है और कब वे इसे बंद कर सकते हैं।

मानसिक परेशानी से जूझ रहे बच्चों को जरूरी है वीडियो ऑप्शन
ऐसा उन बच्चों के साथ जरूरी है, जो किसी चोट से गुजर रहे हैं। हो सकता है कि ये छात्र खुद को स्क्रीन पर देखकर असहज हो जाएं। फैकल्टी डेवलपमेंट और ऑनलाइन टीचिंग और लर्निंग स्पेशलिस्ट केरन कोस्टा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आमतौर पर मिरर व्यू को बंद करना मुमकिन होता है।

कोस्टा ने कहा "हम हमारे सभी सीखने वालों को यह चॉइस देना चाहते हैं कि वे कैमरे पर आना चाहते हैं या नहीं।" कोस्टा खासतौर से कॉलेज के छात्र और फैकल्टी को पढ़ाती हैं। अगर स्टूडेंट्स वीडियो पर नहीं आना चाहता और उनके स्कूल में चैट फोरम्स हैं तो ये चैट्स उन्हें लर्निंग में मदद कर सकती हैं। कोस्टा ने कहा "मैं चैट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करती हूं। अगर हम इसे बंद कर देंगे तो हम सीखने के कई कीमती मौकों को भी बंद कर देंगे।"

कैमरे के फायदों पर भी विचार करें
कैमरे का कब और कैसे इस्तेमाल करना है इस मामले में परिवारों को या तो सबकुछ या तो कुछ नहीं, जैसी सोच रखने की कोई जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए हो सकता है कि बच्चा ब्रेक सेशन के लिए कैमरा चालू रखना चाहता है, लेकिन दूसरी एक्टिविटीज के लिए बंद कर देता है।

बच्चे खुद का बैकग्राउंड तैयार कर सकते हैं
वीडियो फॉर्मेट में पढ़ाई की आदत डालने के लिए बच्चों को वन-ऑन-वन सेशन फायदेमंद होता है। या हो सकता है कि वे स्कूल की शुरुआत में कैमरे को बंद रखें, लेकिन बाद में शुरू कर दें। connectsafely.org में के-12 एजुकेशन के डायरेक्टर कैरी गैलेघर घर में एक स्पॉट तय करने की सलाह देती हैं, जहां बच्चा आसानी से रोज अपना स्कूल जारी रख सके।

जो बच्चे अपने घर को दिखाना नहीं चाहते वे डिजिटल बैकग्राउंड की मदद ले सकते हैं। इसके अलावा वे फैब्रिक या पोस्टर बोर्ड्स जैसे मटैरियल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। कैरी भी टीचर हैं और स्कूल में असिस्टेंट प्रिंसिपल हैं। वे बच्चों को वीडियो पर रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनका कहना है कि बच्चे के बॉडी लैंग्वेज और फेशियल एक्सप्रेशन्स की मदद से टीचर्स को यह जानने में मदद मिल सकती है कि बच्चा समझ पा रहा है या नहीं।

उन्होंने कहा "अगर मैं उनका चेहरा नहीं देख सकती तो मैं यह नहीं बता सकती की वे समझ पा रहे हैं या नहीं।" हालांकि, अगर कोई प्राइवेसी की चिंता है या बच्चा कैमरे के सामने कंफर्टेबल नहीं है तो कैरी पैरेंट्स को स्कूल में बात करने की सलाह देती हैं।

जानें बच्चा किन टूल्स को इस्तेमाल कर रहा है
मॉन्टक्लैयर में रहने वाली तीन बच्चों की मां ओल्गा गार्सिया काप्लान का कहना है, "मेरी सबसे बड़ी चिंता है कि स्कूल या टीचर्स ऐसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं जिसका निरीक्षण नहीं किया गया या बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं है।" उन्होंने कलेक्ट की जा रही जानकारी को लेकर भी सवाल किए।

के-12 साइबर सिक्युरिटी रिसोर्स सेंटर के मुताबिक, 2016 से अब तक अमेरिका के स्कूलों में 900 साइबर सिक्युरिटी से जुड़े मामले सामने आए। ऑनलाइन लर्निंग कंसोर्टियम की सीईओ जैनिफर मैथेस ने कहा "पैरेंट्स के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि क्या जानकारी कलेक्ट की जा रही है औ इसके उपयोग के बारे में जानना उन्हें ज्यादा बेहतर फैसले लेने में मदद करेगा।"

अगर आपका बच्चा इतना बड़ा है कि खुद का फोन चला रहा है तो यह पक्का करें कि वे ऐसी किसी ऐप को डाउनलोड न करें जो स्कूल की स्कूल की जांच से न गुजरी हो। ऑनलाइन क्लासेज में पासवर्ड होना चाहिए और जिस तरह से टीचर पासवर्ड शेयर करते हैं वह सार्वजनिक नहीं होना चाहिए। यह जानना भी मददगार हो सकता है कि टीचर कैसे बच्चे की अटेंडेंस ले रहे हैं या प्रोग्रेस का ध्यान रख रहे हैं।

वेंस माता-पिता को बच्चों मजबूत पासवर्ड और डाटा ट्रैकिंग को रोकने वाले टूल्स का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। आखिरकार क्लास रूम में किसी भी नए टूल का उपयोग करने से पहले टीचर्स को टूल जांचने की प्रक्रिया को जानना चाहिए। वेंस ने कहा "अगर स्कूल के पास ऐसी कोई प्रोसेस नहीं है तो टीचर्स को हर टूल के डाटा कलेक्शन का रिव्यु करना चाहिए और यह पक्का करना चाहिए कि वे सरकार की गाइडलाइंस से मिलती और स्टूडेंट के लिए सुरक्षित हैं या नहीं।"



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According to experts - for safe remote learning, safe digital environment is necessary, children and parents should be cautious about privacy


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देश में ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के मुताबिक, अभी देश में करीब 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं। रिपोर्ट्स के मानें तो 2022 तक इनकी संख्या 44 करोड़ तक पहुंच जाएगी। ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू भी 22% की रफ्तार से बढ़ रहा है।

गेमिंग का गणित

2023 तक रेवेन्यू 11 हजार 400 करोड़ रु. तक बढ़ने का अनुमान है। यह 2014 की तुलना में करीब 3 गुना है। तब रेवेन्यू 4400 करोड़ रु. था। दुनिया के गेमिंग मार्केट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हिस्सेदारी एशिया-पैसिफिक की है। दुनिया ने 2019 में 11.25 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया। इसमें एशिया-पैसिफिक रीजन ने 5.34 लाख करोड़ रुपए की कमाई की।

2024 तक 4 गुना बढ़ जाएगी वैल्यू

  • ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है।
  • दुनिया में सबसे ज्यादा रेवेन्यू जनरेट करने वाला देश अमेरिका है। उसने 2.7 लाख करोड़ रु. कमाई की। चीन (2.2 लाख करोड़) दूसरे पर है।
  • 30 करोड़ ऑनलाइन गेमर हैं देश में। 2022 तक 44 करोड़ हो जाएंगे।
  • 60% से ज्यादा ऑनलाइन गेमर 24 साल से कम उम्र के हैं अभी देश में।
  • 55 मिनट औसत टाइम स्पेंड करता है एक ऑनलाइन गेमर प्रतिदिन।
  • 800 एमबी डेटा खर्च कर देता है एक गेमर प्रतिदिन गेम खेलने के दौरान।


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ऑनलाइन गेमिंग की वैल्यू 2024 तक 4 गुना तक बढ़ने की उम्मीद है। यह 2019 में 6200 थी जबकि 2024 तक 25 हजार 30 करोड़ तक हो सकती है। (प्रतीकात्मक)


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चेन्नई सुपर किंग्स से जुड़े 13 सदस्यों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद फ्रेंचाइजी के दूसरे खिलाड़ी परेशान हैं। सुरेश रैना पहले ही घर लौट चुके हैं। हरभजन सिंह के भी खेलने पर संशय है। वे मंगलवार को दुबई जाने वाले हैं। हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। इस बीच, सीएसके के ऑस्ट्रेलियन तेज गेंदबाज जोश हेजलवुड भी चिंतित हैं। लीग के ब्रॉडकास्टर का एक क्रू मेंबर पॉजिटिव आया है।

हर फ्रेंचाइजी 46 करोड़ के नुकसान का मुआवजा मांग रही, बोर्ड का इनकार

कोरोना के कारण मैच बिना फैंस के खेले जाने हैं। स्पाॅन्सर से मिलने वाली राशि में भी कमी आई है। ऐसे में सभी फ्रेंचाइजी बोर्ड से मुआवजा मांग रही हैं। हर टीम को लगभग 46 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। लेकिन, बोर्ड ने इससे इनकार किया है।

बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, ‘फ्रेंचाइजीज का मुआवजे के बारे में सोचना मूर्खतापूर्ण है। अगर लीग नहीं होती तो उन्हें कुछ नहीं मिलता। आयोजन के लिए विभिन्न एजेंसियों को पैसा कौन दे रहा है। मैच ऑपरेशन का खर्च कौन उठा रहा है।’

इस अफसर ने आगे कहा, ‘हमने साफ कर दिया है कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। टीमें दबाव बना रही हैं। क्या वे पैसे नहीं कमा रहीं। हर टीम लगभग 150 करोड़ कमाएगी। उनकी मांग ठीक नहीं है।’ राज्य संघ के एक सदस्य ने कहा, ‘इस तरह की बातें फ्रेंचाइजी से नहीं की जा रही हैं। बोर्ड का एक व्यक्ति निजी कारणों से इन बातों को उकसा रहा है।’



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हरभजन से जुड़े एक सूत्र ने कहा- वे चिंतित हैं और खुद के कार्यक्रम में बदलाव कर सकते हैं या हट सकते हैं। (फाइल)


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क्या हो रहा वायरल : सोशल मीडिया पर कुछ फोटो वायरल हो रही हैं। फोटो में भारी बारिश के चलते सड़कों और घरों में हुआ जलभराव दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि ये फोटो नीट और जेईई परीक्षा केंद्रों की हैं। फोटो शेयर करते हुए सोशल मीडिया पर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि जब परीक्षा केंद्रों की यह हालत है, तो फिर परीक्षा कैसे आयोजित होगी ?

देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए होने वाली JEE मेन्स मंगलवार से शुरू हो रही है। यह परीक्षा 6 सितंबर तक होनी है। वहीं मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए होने वाली NEET 13 सितंबर को होगी।

कोरोना संक्रमण के बीच हो रही इन दो परीक्षाओं को लेकर जहां पैरेंट्स परेशान हैं। वहीं, छात्रों ने लगातार परीक्षा पोस्टपोन करने की सरकार से मांग की थी। हालांकि, इसी बीच सोशल मीडिया पर इन परीक्षाओं को लेकर कई भ्रामक दावे भी किए जा रहे हैं।

चार फोटो वायरल हो रही हैं

1. पहली फोटो

एग्जाम सेंटर में जलभराव के दावे के साथ ये तस्वीरें पिछले एक सप्ताह से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं।

2.दूसरी फोटो

इस फोटो को देखकर स्पष्ट हो रहा है कि ये कोरोना काल की नहीं है। कोई भी शख्स मास्क पहने नहीं दिख रहा। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट संचालित होता दिख रहा है। जबकि इस समय अधिकतर राज्यों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद है।

3. तीसरी फोटो

जेईई परीक्षा आयोजित कराए जाने के लगातार हो रहे विरोध के पीछे दो वजह हैं। पहली देश भर में तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मामले। और दूसरी, देश के कई हिस्सों में बाढ़ के हालात।

4. चौथी फोटो

चूंकि इस समय बिहार, मध्यप्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य सच में बाढ़ का सामना कर रहे हैं। इसलिए एग्जाम सेंटरों में जलभराव के दावे को यूजर सच मानकर शेयर कर रहे हैं।

फोटो के साथ वायरल हो रहा मैसेज

This is the condition of examination centers and govt. wants to conduct exam's

हिंदी अनुवाद - परीक्षा केंद्रों की यह हालत है और सरकार परीक्षा आयोजित कराना चाहती है।

सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे

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फैक्ट चेक पड़ताल

नीट और जेईई के परीक्षा केंद्रों का बताकर चार फोटो वायरल हो रही हैं। हमने एक-एक करके हर फोटो की जांच शुरू की, तो बिल्कुल अलग ही सच्चाई निकल कर आई।

पहली फोटो का सच

गूगल पर फोटो को रिवर्स सर्च करने से कुछ मीडिया रिपोर्ट सामने आईं। जिनसे पता चलता है कि फोटो इलाहाबाद में हुई बारिश का है। फोटो में जलमग्न दिख रहा एमएल कॉन्वेंट स्कूल इलाहाबाद का ही है। न्यूज वेबसाइट पर उल्लेख नहीं है कि खबर किस समय की है। लेकिन, खबर में प्रयागराज का पुराना नाम ‘इलाहाबाद’ लिखा हुआ है।

उत्तरप्रदेश सरकार ने अक्टूबर, 2018 में इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखे जाने को मंजूरी दी थी। तबसे मीडिया रिपोर्ट्स में भी शहर का नाम प्रयागराज ही लिखा जाता है। स्पष्ट है कि वायरल हो रही पहली फोटो दो साल से भी ज्यादा पुरानी है और इसका नीट-जेईई परीक्षा से कोई संबंध नहीं है।

दूसरी फोटो का सच

न्यूज-18 की वेबसाइट पर तीन साल पुरानी एक फोटो स्टोरी है। स्टोरी में 29 अगस्त, 2017 की देश भर की बड़ी घटनाओं की तस्वीरें हैं। यहां हमें वो दूसरी फोटो मिली। जिसे नीट-जेईई परीक्षा केंद्रों का बताया जा रहा है। असल में ये फोटो मुंबई में आई बाढ़ की है।

तीसरी फोटो का सच

दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 4 अगस्त, 2019 की खबर से पता चलता है कि ये फोटो पिछले साल हरिद्वार में आई बाढ़ का है।

चौथी फोटो का सच

चौथी फोेटो को रिवर्स सर्च करने पर भी दैनिक जागरण की ही एक खबर हमारे सामने आई। 9 जुलाई, 2019 की इस खबर में फोटो को पटना में हुई बारिश का बताया गया है।

निष्कर्ष: JEE-NEET के परीक्षा केंद्रों का बताकर शेयर की जा रही तस्वीरें यूपी, बिहार, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में आई बाढ़ की हैं। पुरानी तस्वीरों के आधार पर भ्रामक दावा किया जा रहा है कि परीक्षा केंद्रों में बाढ़ का पानी भरा है।



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Is the situation bad due to floods at NEET-JEE examination centers? Old pictures of floods in Uttarakhand, UP and Bihar go viral with false claims


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