कई लोगों के पास रहने और उनसे बात करने पर बहुत अच्छा महसूस होता है। सकारात्मक ऊर्जा महसूस होने लगती है। वहीं, कुछ लोगों से मिलकर निराशा के भाव आने लगते हैं। ऐसे लोग नकारात्मकता फैलाते हैं। इस तरह के लोगों से दूर रहना चाहिए। नकारात्मक लोगों के साथ रहने से डर और शंका बढ़ने लगती है। जिससे हर काम में गड़बड़ी होती है। काशी के धर्म ग्रंथों के जानकार पं. गणेश मिश्र के मुताबिक ग्रंथों में कहा गया है कि नकारात्मक लोगों से दूर रहना चाहिए। वहीं, व्यवहारिक नजरिये से देखा जाए तो ऐसा करने से खुद को नेगेटिव होने से बचाया जा सकता है।
ग्रंथ: मानसिक दोष है नकारात्मकता
महाभारत, मनु और वशिष्ठ स्मृति सहित अन्य धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि नकारात्मक सोच वालों से दूर ही रहना चाहिए। ग्रंथों में नकारात्मकता को हीन भावना कहा गया है। ये एक मानसिक दोष की तरह ही है। इसके कारण डर और शंका पैदा होती है। जिससे बुद्धि दूषित हो जाती है और भ्रम पैदा होने लगता है। भ्रम की वजह से किसी भी काम में सफलता नहीं मिल पाती है। इसलिए धर्म ग्रंथ कहते हैं कि नकारात्मक यानी हीन इंसानों से दूरी रखनी चाहिए।
नकारात्मकता के कारण नहीं मिलता काम का नतीजा
व्यवहारिक नजरिये से देखा जाए तो नकारात्मक सोच वाले लोग अपनी बातों से आसपास के लोगों को भी परेशान कर देते हैं। नकारात्मक लोग शंका और डर का माहौल बनाकर अनजाने में ही दूसरों को भी प्रभावित कर देते हैं। जिससे ओर लोग भी किसी काम को पूरे मन से नहीं कर पाते हैं। इस तरह बार-बार गलत विचारों के मन में आने से कोई भी काम पूरी इच्छा शक्ति के साथ नहीं हो पाता। इससे उस काम का नतीजा भी नहीं मिलता।
ऐसे करें पहचान
जब भी आप किसी से मिलें तो ध्यान दें कि आपको किस तरह का अनुभव होता है। क्या आपके भीतर अजीब सी निराशा का भाव जाग जाता है और आप अपने आपको कमतर आंकने लगते हैं? अगर ऐसा होता है तो जल्द से जल्द उस व्यक्ति से दूरी बना लेनी चाहिए, क्योंकि वह आपके शरीर से सारी ऊर्जा को निष्कासित करने का काम कर रहा है। ऐसे लोग ना सिर्फ आपको मानसिक बल्कि शारीरिक दोनों ही तरीके से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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Source From
RACHNA SAROVAR
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