भक्ति स्थान शिर्डी में 4 जुलाई से 6 जुलाई के बीच श्री गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाया जा रहा है। देश विदेश के लाखो साईंभक्त श्री साईंबाबा को गुरु मानते हैं। श्री साईसच्चरित के 17वें अध्याय में लेखक हेमाडपंत द्वारा गुरु का महत्व बताया गया है। हेमाडपंत कहते हैं कि हर रोज उत्तम शास्त्रग्रंथोंको सुनना चाहिए, विश्वसनीय रूपसे सद्गुरु के वचन सर आंखों पर रखने चाहिए तथा हर समय सावधानी बरत कर तथा अपने ध्येय से विचलित ना होते हुए लोग अपने उद्धार का मार्ग चयन करते हैं। उनके उपदेशों से अनगिनत लोगों का उद्धार होता है और उनके लिए मोक्ष का मार्ग सरल हो जाता है।
गुरु पूर्णिमा पर शिर्डी के श्री साईबाबा संस्थातन विश्वेस्तपव्यवस्था के जनसंपर्क अधिकारी मोहन यादव से जानिए इस पर्व का महत्व...
नूलकर ने की थीगुरु पूर्णिमा पर साईं बाबा की पूजा
श्री साईं बाबा के अनन्य भक्त तात्या साहेब नूलकर अपनी माताजी तथा सासू मां को लेकर शिर्डी पधारे थे। उसी दिन गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर तात्या साहेब नूलकर ने पूर्णिमा के दिन बाबा की पूजा की थी। पूजा कर तात्यासाहेब नूलकर चले जाने के पश्चात् बाबाने तात्या पाटिल कोते इनको पहुँचने के लिए संदेशा भेजा। इस समय तात्या पाटिल कोते अपने खेत में काम कर रहे थे। बाबा का संदेशा पाकर वे तुरंत बाबा के पास पहुंचे. उस समय बाबा ने कहां, “वह अकेला क्यों मेरी पूजा करता है, तुम पूजा क्यों नहीं कर सकते? किन्तु बाबा को क्रोध आयेगा यह सोचकर मन में होते हुए भी कोई इस बारे में धीरज नहीं बांध पाता था।
अब प्रत्यक्ष बाबाकी ही अप्रत्यक्ष सम्मति मिलने के पश्चात् तात्या पाटिल कोते तथा वहां उपस्थित माधवराव देशपांडे आदि सभी भक्तोंके आनंद की सीमा नहीं रही। इसके पश्चात सब से ज्येष्ठ दादा केलकर को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा की गुरु रूप में पूजा करने का मान प्रदान किया गया। उन्होंने द्वारकामाई जाकर गंध, अक्षत, हार, फूल, धोती जोड़ आदि सामग्री से बाबा की यथाविधि पूजा की। इस दिनसे साईं भक्त गुरु पूर्णिमा पर्व मनाने लगे।
ज्ञान के महासागर गुरु
श्री साईं सच्चरित्र के 17 वें अध्याय में हेमाडपंत इन्होंने गुरु का महत्व समझाया है। हमेशा उत्तमोत्तम शास्त्रों का श्रवण करें, विशवास के साथ सद्गुरुवचन का पालन करें तथा सदा सावधान रहकर स्वयं की नजर ध्येय पर रखनी चाहिए। शास्त्र तथा गुरु के बताये उपदेश एवं आचरण ध्यान में रखते हुए लोग अपने उद्धार का मार्ग चुनतें हैं। गुरु के उपदेश के कारण अनगिनत लोगों का उद्धार होता है तथा उनके लिए मोक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है। बिना श्रद्धायुकत मन तथा पूर्ण विनम्रता के साथ साष्टांग प्रणाम कर गुरु की शरण में विलीन होने की स्थिति में गुरु अपने शिष्य को ज्ञान की पोटली नहीं देते हैं। गुरु को सेवा के लिए सर्वस्व अर्पण करने की जरुरत है। उनसे बंध तथा मोक्ष इन बातों का स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहिए। उनसे विद्या तथा अविद्या इन विषयोंपर प्रश्नय करने चाहिए। इससे गुरु द्वारा उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
आत्मा तथा परमात्मा की पहचान गुरु के बिना कोई अन्य प्रदान नहीं कर सकता। जब तक शिष्य पूर्णतया शरण में नहीं आता, गुरु ज्ञान का एक तिनका भी उसे प्रदान नहीं करते हैं। गुरु के आलावा अन्य किसी से प्राप्त ज्ञान इस मायारूपी संसार से सम्पूर्ण मुक्ति नहीं दिला सकते। मोक्ष की चिंता तथा चर्चा भी फलद्रुप तथा मनमें स्थिर नहीं होती। इसीलिए कहा गया है की गुरुबिन कौन बताये बाट...और सब को पता भी है। ब्रह्म तथा आत्मा इनके एक साथ मिलाने का काम केवल गुरु के चरण ही कर सकतें हैं।
यहां बिना किसी तकरार के तथा अभिमान को त्याग कर गुरु चरण में साष्टांग लीन हो जाइए तथा मनमें अपना निग्रह कर गुरु के चरण स्पार्श तथा प्रार्थना कीजिये, “हे गुरुदेव, मैं आपका दासानुदास हूँ तथा मुझे केवल आपके चरणोंका विशवास है।” फिर देखिये चमत्कार होता हुआ। वह गुरु के रूप में दया का सागर डोलने लगेगा तथा आपको अपनी लहरोंकी शय्यापर ऊपर ही ऊपर सम्हाल लेगा। आपको अभयदान देकर गुरु आपकी दुर्दशाओंको ध्वस्त कर देंगे। आपके मस्तक पर उदी चढ़ाकर आपकी पूरी पाप राशियोंको जलाकर राख कर देंगे।
साईंनाथ गुरु मेरी माई
हेमाडपंत ने साईं सच्चरित के 18 वे अध्याय में कहा है की साईबाबा बिना किसी क्रोध-लोभ के प्रत्येक भक्त के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उसे सही मार्गदर्शन करतें हैं। कई लोग कहते है की यदि गुरु ने बतायी बात किसी और से कही जाती है तो वह विफल हो जाती है, किन्तु यह केवल एक कल्पना तथा बिना किसी मतलब का ढोंग है। केवल प्रत्यक्ष रूपसे ही नहीं अपितु सपनेमें प्रदान किया गया अच्छा उपदेश सभी को बताना चाहिए। इसके लिए आधार की बात करें तो हमारे पास बुध तथा कौशिक इन मुनिजनोंके कथन का आधार मिलता है। उन्होंने स्वप्नावस्था दीक्षा के रूप में प्राप्त “श्री रामरक्षा स्तोत्र” सभी को कथन किया था। सद्गुरु वर्षा ॠतुमें आये बादल है और ये स्वानंद रूप वर्षा सभी के लिए प्रदान करते हैं। वे रोक कर रखते नहीं। स्वयं अपनी इच्छापूर्ति तक पान कर सभी को पानी पिलाना चाहिए। जैसे बालक का मुंह पकड माता उसे बहुत प्यार से दवाई या गोली देती है उसी प्रकार बाबा भी कुशलतापूर्वक यह काम करते थे। उपदेश करनेका उनका मार्ग गुप्त नहीं था। अपने भक्तोंके मनका भाव जानकर वे उसको किसी तरहसे पूरा कर ही देते थे।
सद्गुरु का साथ हर मायने में धन्यभाग माना जाता है तथा उसका वर्णन करना किसी के लिए भी संभव नहीं है। सद्गुरु के हर वचन की यादों के साथ उसको समझाने की उर्मी जागृत हो उठती है। यदि ईश्वर का भक्तिभाव से स्तुतिपाठ तथा पूजा की जाए तो और यदि गुरु की सेवा तथा पूजा की जाए तब गुरु से ज्ञान प्राप्ति होती है, बाकी साधन यहाँ व्यर्थ हो जाते हैं। विक्षेप तथा देहरुपी के कारण से संसार की मुक्तीय का मार्ग दिखाई नहीं देता। गुरु का उपदेश इन कठिनाइयों को दूर कर योग्यर मार्ग दिखाते हैं। गुरु प्रत्यक्ष ईश्वर है। ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश है। केवल गुरु ही परमात्मा तथा परात्पर ब्रह्म है। इसीलिए गुरुगीता में गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णू गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु:साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: कहा गया है। गुरु माता भी है तथा पिता भी। भगवान् यदि गुस्सा हो जाए तब गुरु आपको बचा सकतें है किन्तु यदि गुरु क्रोधित हो जाए तब आपको कोई भी नहीं बचा सकता। यह तथ्य हमेशा याद रहे। गुरु परिवार के व्यवहारका मार्गदर्शन करनेवाला, धार्मिक स्थलों एवं क्षेत्रों तथा पावन व्रतों की जानकारी देनेवाला एवं निवृत्ति, धर्म, अधर्म, विरक्ति तथा श्रूति इन के बारे में प्रवचन करनेवाला है।
बाबा का गुरुस्थान... गुरुस्थान में बाबा
शिर्डी में श्री साईं बाबा के सबसे पहले दर्शन हुए एक नीम के पेड़ के नीचे। इस स्था न पर बाबा ध्यान में मग्न अवस्था में बैठते थे। बाबा कहते थे कि यह स्थान उनके गुरुदेव का है तथा उन्हें बहुत प्रिय है। इस स्थान की महती समझाते हुए बाबा कहते थे कि गुरूवार तथा शुक्रवार के दिन सूरज ढलने के समय यहाँ की जमीन को पोतकर जो यहाँ पलभर के लिए भी धूप जलाएगा उसे सुख की प्राप्ति होगी। यहां से गुजरते हुए हर बार बाबा यहाँ नतमस्तक हो जाते थे। श्री साईं ने गुरु की महती पुरजोर तरीके से बतायी है। उन्हों ने कभी किसी को उपदेश नहीं दिया किन्तु उनके मुख से प्रवाहित सहज शब्दों से अनेकानेक लोगों के मन में उठे सवालों के उत्तर मिल जाते थे।
माथे पर तिलक लगाकर जैसे गुरु पूजा की जाती है वैसी पूजा बाबा शुरुवात के दिनों में किसी को भी करने नहीं देते थे। केवल म्हाळसापति उनकी पूजा माथे पर तिलक लगाकर करते थे। अन्य भक्त गण बाबा के चरणों को तिलक लगाकर पूजा करते थे। सर्वप्रथम बाबा के माथे पर तिलक लगाने का सौभाग्य नानासाहेब चांदोरकर के बापू नामक पुत्र को प्राप्त हुआ। उसके पश्चात् तात्यासाहेब नूलकर के एक मित्र डॉक्टर पंडित बाबा के दर्शन हेतु पधारे और उन्हों ने बाबा के माथे पर तिलक का एक सुन्दर त्रिपुंड्र बनाया। इस अघटित घटना को देख उनके साथ आये दादा भट आश्चर्य में डूब गए। उनको लगा की अब बाबा क्रोधित हो सकते हैं। किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं। उसी दिन शाम को दादा इस घटना के विषय में बाबा से रूबरू हुए। इस समय बाबा ने कहा की डॉक्टर ने अपना गुरु मानकर मेरी पूजा की थी।
सच्चरित में स्थित गुरु की महती
हेमाडपंत ने साईचरित्र के 18 वे अध्याय के अन्तमें तथा 19 वे अध्याय के शुरू में गुरु की महती का वर्णन करते हुए राधाबाई नामक एक वृद्ध महिला की बाबा के प्रति श्रद्धा तथा इसके दृढ निश्चय के संबंध में एक कहानी कही है। राधाबाई संगमनेर के खाशाबा देशमुख की माताजी थी और श्री साईबाबा की महती सुन कर वे दर्शन के लिए शिर्डी पधारी थी। उन्होने श्री साईबाबा के चरणों का श्रद्धापूर्वक दर्शन किया और उसके बाद उनको बाबा के प्रति अपरम्पार प्रेम उभर आया। उन के मन में श्री साईबाबा को अपना गुरु करने की एक तीव्र इच्छा हुई। उनकी कामना थी की बाबा के गुरु हो जाने पर बाबा सही उपदेश करेंगे जिस से उनको परमार्थ की प्राप्ति हो जायेगी। उम्र से राधाबाई काफी थी किन्तु उनकी बाबा पर अपार निष्ठा थी। उन्हों ने निश्चय किया कि जबतक बाबा मुझे उपदेश नहीं देते तब तक मैं शिर्डी छोड़कर नहीं जाउंगी...यह कह कर उन्हों ने तीन दिन तक अन्न जल त्याग दिया। मंत्र प्राप्त करुँगी तो केवल श्री साईंबाबा के के मुखसे क्यों की अन्य जगह से मिला मंत्र पवित्र नहीं होगा। श्री साईबाबा महान उपकार करनेवाले संत है और मुझे उनसे ही अनुग्रह मिलना चाहिए। मन में इस निश्चय के साथ राधाबाई ने अन्न जल छोड़ दिया और धरने पर बैठ गयी।
राधाबाई का पक्का निश्चय देख बाबा ने उनपर अनुग्रह किया। उन के मन का विचलन बदल दिया। बाबाने उन्हें प्रेमपूर्वक आवाज दे कर कहा, “माँ! आप यह धरने पर क्यों कर बैठ गयी? आपको मृत्यु की याद क्यों आ रही है? शरीर को कष्ट क्यों कर दे रही हो? मैं तो एक टुकड़े बटोरने वाला फ़क़ीर हूँ। मेरी और प्यार से देखो...देखो की मैं आपका बेटा हूँ और आप तो माँ हो साक्षात। अब मेरी और ध्यान दो। तुम्हें एक आश्चर्य की बात बताता हूँ जो तुम्हें बहुत सुखदायक रहेगी।मेरा गुरु बहुत अवलिया किस्म का तथा बहुत ही कृपालु इंसान था। गुरु की सेवा कर मैं थक गया किन्तु उन्हों ने मुझे गुप्त मंत्र नहीं दिया। मेरे मनमें बहुत इच्छा थी की मैं उनकी शरण में ही रहूँ तथा बहुत सेवा कर उनके मुख से मंत्र स्वीकार करूँ। शुरुवात में गुरु ने मुझे बहुत लुटा भी।
मुझसे दो पैसे मांगे और मैंने भी तुरंत उनको दे भी दिए और मंत्र के लिए उनसे बार बार बिनती की। मेरे गुरु तो पूर्ण काम थे (इसका अर्थ उनकी सभी इच्छा आकांक्षाएँ पूरी हो चुकी थी). उनको दो पैसों से भला क्या काम? चेले के पास से पैसे मांगे वे गुरु कैसे जब गुरु तो पूरे निष्काम होते हैं। किन्तु यह शंका मन से निकाल दो। गुरु को व्यावहारिक पैसे की कदापि चाहत सपनों में भी नहीं हो सकती। उनको पैसे से क्या काम? श्रद्धा और सबुरी यही वे दो पैसे थे और कुछ नहीं। जब मैंने यह दोनों उन्हें दे दिए तब गुरु मुझ पर बहुत प्रसन्न हुए। धीरज का अर्थ है सबुरी। उसे कभी भी दूर ना जाने दियो। मुश्किलें कितनीही बड़ी क्यों न हो, और बिन बताये भी आ जाए उस समय यही सबुरी आप की नैय्या पार लगाएगी। पुरुष की सब से बड़ी क्षमता या पौरुष होती है सबुरी। सबुरी क्रोध तथा दीनता को बाहर करती है। सभी मुश्किलों को युक्ति-प्रयुक्ति द्वारा दूर करती है तथा सभी डर को ठिकाने लगाती है। सबुरी के मार्ग पर यश मिलता है तथा आपदायें दशी दिशा में भाग खड़ी होती है। यहाँ अविचार की त्रासदी किसी को ज्ञात भी नहीं होती। सबुरी है अच्छी बातों की खदान तथा अच्छे विचारों के राजा की वह महारानी है। श्रद्धा तथा सबुरी तो मानो दो सगी बहनें हैं और एक दूसरे की जान हैं। बिना सबुरी के इंसान की स्थिति दीन हो जाती है। फिर कोई पंडित हो या गुणवान सबुरी की बिना उनका जीवन व्यर्थ रहता है।
गुरु स्वयम ही समर्थ हो इस अवस्था में भी उसे अपने चेले की ओरसे तेज बुद्धि, पूरी ताकत से श्रद्धा तथा धीरज के साथ सबुरी की अपेक्षाएँ रहती है। पत्थर तथा हीरा दोनो ही यदि पूजा के पत्थर पर घिसे जाएँ तो पाइए की दोनों साफ़ सुथरे हो गए हैं। किन्तु देखिये की पत्थर पत्थर ही रहता है और हीरा चमकनें लगता है। चमकाने के लिए विधि तो दोनों के लिए एकही किया गया। किन्तु पत्थर पर क्या हीरे का तेज चमकेगा? हीरा तो चमकता हीरा बनेगा और पत्थर अपना चुपडापन कभी भी नहीं छोड़ पायेगा।
गुरु के घरोंदे में साईनाथ
बाबा ने कहा, “बारा साल मे गुरु के चरणों में रहा और गुरु ने मुझे बचपनसे बडा किया। गुरु के ह्रिदय में अपार करुणा थी और मुझे अन्न-वस्त्र की कोई समस्या नही थी। मेरे गुरु केवल भक्ती प्रेम के पुजारी थे और उन्हे चेले के लिये सच्चा अपनापन था। मेरे गुरु के जैसा गुरु नही मिलेगा और उनके साथ बिताये हुये क्षण और उनमें पांया सुख बताया नही जा सकता। मै उस प्रेम का वर्णन नही कर सकता। उनकी दिशा में देखने भर में मेरी आँखे मनो ध्यान में लग जाती थी। हम दोनोंही बहुत आनंदविभोर रहते थे और मुझे तो दूसरा कुछ देखानाही नहीं था। मैं रात दिन केवल और केवल गुरुमुख का अवलोकन कर पावन हो जाता था। ना मुझे फिर भूख लगती न प्यास...गुरु के बिना मैं अस्वस्थ हो जाता था। मेरे मन में और कोई ध्यान समा नहीं सकता था। उनके सिवा मेरा कोई लक्ष्य नहीं था। केवल गुरु ही मेरे लिए एकमेव अनुसंधान थे। किसीने सही कहा है कि गुरु की कुशलता का अंदाजा नही लग सकता।
मेरे गुरु की भी यही अपेक्षा थी। इस के अलावा उनकी कोई इच्छा नहीं थी। गुरु ने मेरी कभी भी उपेक्षा नहीं की किन्तु हर आपदा से मेरा संरक्षण जरुर किया। कभी मैं गुरु के चरणों में था या कभी असंमजस के उस पार...किन्तु में कभी भी उनकी साथ सहयोग से दूर नहीं हुआ था। गुरु मुझे कृपा की नजर से सम्भााल रहे थे। ठीक ऐसे जैसे मादा कछुआ की केवल नजर से उसके बच्चों को अपार सुख संतोष का लाभ होता है। हे माँ! आप दुखी क्यों होती हो? मुझे उपदेश या कहानियाँ कुछ पता नहीं। मादा कछुआ नदी के एक किनारे पर और उसके बछड़े नदीपार रेत में रहते हुए भी उनका पालन – पोषण होता है...इसीलिए कहता हूँ कि मंत्र की बिना काम की झंझट क्यों मोल लेना है? मैं कहता हूँ कि अब तुम जाओ और अन्नग्रहण करो। जान जोखिम में मत डालो। केवल मेरी और नजर करो। आपके हाथ परमार्थ लग जाएगा। “आप मेरी ओर अनन्य भाव से देखो तथा मैं भी आपकी ओर देखूंगा। इससे अलावा मेरे गुरु ने मुझे कुछ पढ़ाया ही नहीं। ज्ञान प्राप्ति के लिए उस के चार साधनों की (विवेक, वैराग्ये, संपत्ति तथा मुमुक्षुता) भी जरुरत नहीं। छह शास्त्रों का अवगत होना भी जरुरी नहीं। केवल एक श्रद्धा चाहिए कि कर्ता तथा हर्ता दोनों ही एक गुर में समाये हैं। इसलिए गुरु की महती अपरम्पार है। जो गुरु की स्थिति को साक्षात ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश होना जानता है वही इस त्रिलोक में धन्य भाव का अधिकारी है। इस प्रकार बाबा से बोध लेने के पश्चात् राधाबाई के मन में यह बात बस गयी और उन्हों ने बाबा के चरण पर मस्तक रख अपना व्रत रोक दिया।
श्री साईबाबा की शिक्षा
ईश्वर है तथा उस से बड़ा कोई नहीं। वह पूरे चराचर में भरा तथा फिर भी बाकी है। उस की लीला अगाध है। निर्मिती भी उसी की, रखरखाव भी उसी का तथा संहार भी उसी का रहता है। इसलिए रहिये वैसे जैसे उस ने रक्खा है, उसकी मर्जी में खुश रहो, लालसा मत रक्खो। उसकी इच्छा के बिना पेड़ का पत्ता भी नहीं हिलता। हर किसी ने विश्वसनीय तथा सच्चाई से रहना चाहिए। बहस नहीं चाहिए। अपनी अच्छी विवेकशीलता जागृत रक्खें। अपना कर्तव्य ईश्वर को प्रदान कर उसका फल भी उसे ही समर्पित करना चाहिए इस से हम दूर रहेंगे तथा हमारे कर्म हमें बाधा नहीं पहुंचा सकेंगे।
सभी भूतमात्र से प्यार से पेश आयें, बहस ना करें। कोई कुछ कहता है तो उसे सुने। किसी के कुछ कहने से अपने शरीर में छेद नहीं हो जाते। ना किसी की बराबरी करें, ना ही किस की निंदा...किसी के कुछ करने पर ध्यान ना दें। उस का उस के पास तथा हमारा हमारे पास, काम करते रहें। खाली ना रहें। ईश्वर का नामस्मरण करते रहें। पोथी या पुराणोंका पाठ करें। आहार विहार की दिनचर्या छोडने की जरुरत नही किंतु वाह नियमित रूप से आचरण में लायें।
यदी किसी का व्यवहार निंदनीय तथा डांट लगाने योग्य हो तब भी उस पर दया कर अपने सामने ही उसे शिक्षा की दो बाते बताये। उस व्यक्ती के पीछे उस के आचरण पर टीका, टिप्पणी या चर्चा से दूर रहें तथा इस प्रकार चाल रही चर्चा में हिस्सा ना लें। इस विषय में एक निंदक व्यक्ती को बाकी भक्तों के सामने एक मल-मूत्र पर चटखनेवाली मादी सूवर को दिखा कर श्री साई बाबा ने बहुत भर्त्सना की तथा इस घटना से केवल उसे ही नही किंतु सभी भक्तोंके लिये श्री साई बाबा ने शिक्षा दी।
श्री साईबाबा के मुख से वचनावली
यदि मेरे प्राणपखेरू भी उड जाये उस स्थिती में भी मेरा वचन प्रमाण मानो। मेरी अस्थीयाँ भी मेरी तुर्बत से आपको आश्वस्त करेगी। केवल मैं ही नही, मेरी तुर्बत भी आपके साथ बात करती रहेगी और जो उसे पूरी तरह से शरण जायेगा उसके साथ वह डोलेगी भी। चिंता मत करो की मैं आँखो से ओझल हो जाऊंगा, आप मेरी अस्थीयाँ आपसे बात करती पायेंगे तथा कान में कुछ बोलते हुये सुनेंगे। केवल मेरा स्मरण किजीए, मन ही मन में मेरा विश्वास किजीये और बिना किसी इच्छा के मेरा भजन किजीये। आप अपना कल्याण होता हुआ पायेंगे।
आप कही भी रहें, कुछ भी करें, केवल एक याद रखिये की आपकी हर चहल पहल की पूरी खबर मुझे हमेशा मिलती रहती है। यह जो अनुभव आप को मिलता है वह इस वजह से की मै आपके सबसे नजदीक, सबके दिलोंमें रहनेवाला, सभी जगह जा सकनेवाला तथा सबका स्वामी हूँ। सभी सजीव तथा निर्जीव सृष्टि को अंतर्बाह्य लिपटकर मै बाकी हूँ। यह सारी योजनायें ईश्वर द्वारा पहलेसे ही तैयार की गयी रचना है और इसका प्रमुख चालक मै ही हूँ।
मै ही पूरी चराचर सृष्टि का निर्माण कर्ता हूँ तथा संत, रज, तम, इन तीनो गुणों के समान प्रमाण अवस्था भी मै ही हूँ। सभी इन्द्रियोंको चलानेवाला भी मै हूँ तथा कर्ता, धर्ता तथा संहारकर्ता भी मै हूँ। जो मुझ पर ध्यान देता है उसको कोई विघ्न बाधा नहीं हो सकती। किन्तु जो मुझे भूल जाता है उसे माया कोडे से परेशान कर उस का छल करती है। जो जो आप की दृष्टी में आता है वह सभी मेरा ही स्वरूप है। चाहे वह छोटासा कीटक हो, चींटी हो, गरीब हो या चाहे राजा हो, यह स्थित तथा आस्थित विश्व जो नापे नहीं जा सकते वह सभी श्री साईं का ही अपना रूप है।
from Dainik Bhaskar
via RACHNA SAROVAR
CLICK HERE TO JOIN TELEGRAM FOR LATEST NEWS
Post a Comment