लद्दाख में संघर्ष के बीच मोदी सरकार ने चीनी कंपनी को दिया 1126 करोड़ का टेंडर; जानिए सबकुछ

भारत और चीन के बीच सीमा पर पिछले 8 महीने से जारी तनाव अभी खत्म भी नहीं हुआ है और एक ऐसी खबर आ गई है, जिसने भारतीयों के मन में चीन को लेकर और गुस्सा भर दिया है। ये खबर है चीनी कंपनी को 1,126 करोड़ रुपए का टेंडर मिलने की। दरअसल, नेशनल केपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन यानी NCRTC दिल्ली से मेरठ के बीच रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) बना रहा है। ये 82 किलोमीटर लंबा होगा। इसके एक छोटे से हिस्से का ठेका चीनी कंपनी को भी मिला है। ये चीनी कंपनी है शंघाई टनल इंजीनियरिंग लिमिटेड। ये कंपनी 5.6 किमी की टनल बनाएगी।

लेकिन सवाल ये है कि जब एक तरफ दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव जारी है। बायकॉट चाइनीज प्रोडक्ट की बात कही जा रही है। तो फिर सरकार ने चीनी कंपनी को ठेका क्यों दिया? इसके बारे में हम नीचे जानेंगे, लेकिन उससे पहले इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में समझते हैं...

क्या है दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट?
NRCTC दिल्ली से मेरठ के बीच देश का पहला रीजनल रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम बना रहा है। इसके तहत दिल्ली-मेरठ के बीच सेमी हाईस्पीड रेल कॉरिडोर बनाया जा रहा है। ये प्रोजेक्ट दिल्ली से गाजियाबाद होते हुए मेरठ से जुड़ेगा। ये पूरा प्रोजेक्ट 82.15 किमी लंबा है। जिसका 68.03 किमी हिस्सा एलिवेटेड और 14.12 किमी अंडरग्राउंड होगा। शंघाई टनल इंजीनियरिंग लिमिटेड कंपनी 5.6 किमी की टनल बनाएगी।

NRCTC के मुताबिक इस प्रोजेक्ट का 17 किमी का हिस्सा 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगा। जबकि पूरा 82 किमी लंबा कॉरिडोर 2025 तक शुरू हो जाएगा। इस कॉरिडोर के खुलने के बाद दिल्ली से मेरठ बस 55 मिनट में पहुंचा जा सकेगा। NCRTC की मानें तो इससे रोजाना 8 लाख यात्री सफर करेंगे।

दिल्ली-मेरठ के अलावा दिल्ली से अलवर तक 198 किमी और दिल्ली से पानीपत के बीच 103 किमी लंबा ऐसा कॉरिडोर बनाया जाएगा।

इस कॉरिडोर में जो ट्रेन चलेगी, उसकी टॉप स्पीड 180 किमी प्रति घंटा होगी। जबकि एवरेज स्पीड 100 किमी प्रति घंटा रहेगी। यानी एक घंटे में 100 किमी की दूरी तय हो जाएगी। ये मेट्रो की तुलना में तीन गुना ज्यादा है।

कौन है वो चीनी कंपनी जिसे इसका ठेका मिला है?
इस पूरे कॉरिडोर का 5.6 किमी का हिस्सा शंघाई टनल इंजीनियरिंग लिमिटेड बनाएगी। उसने 1,126.89 करोड़ रुपए ये ठेका हासिल किया है। इस कंपनी को 1965 में शुरू किया गया था।

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस चीनी कंपनी की मार्केट कैप करीब 20 हजार करोड़ रुपए है। सितंबर 2020 की तिमाही में कंपनी ने साढ़े 15 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का रेवेन्यू मिला था।

कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक सिंगापुर, भारत, हॉन्गकॉन्ग, मकाउ, पोलैंड और अंगोला समेत दुनियाभर के 15 देशों के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। अब तक कंपनी दुनियाभर में 500 से ज्यादा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है।

कंपनी टनल, रेल ट्रांसपोर्ट, रोड, ब्रिज, अंडरग्राउंड स्पेस डेवलपमेंट जैसे प्रोजेक्ट पर काम करती है। कंपनी हर साल 56 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का रेवेन्यू कमाती है। इसके अलावा पिछले तीन साल में कंपनी ने 90 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा इन्वेस्ट किए हैं।

अब जवाब उसका कि आखिर क्यों तनाव के बीच भी सरकार ने चीनी कंपनी का ठेका रद्द नहीं किया?
दरअसल, 5.6 किमी लंबी टनल बनाने के लिए नवंबर 2019 में टेंडर निकाला गया था। इसके लिए शंघाई टनल इंजीनियरिंग समेत 5 कंपनियों ने बोली लगाई थी। सबसे कम बोली शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी ने लगाई थी।

भारतीय कंपनी लार्सन एंड ट्रूबो (L&T) ने 1,170 करोड़ रुपए और टाटा प्रोजेक्ट्स ने 1,346 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। तुर्की की कंपनी गुलेरमार्क ने 1,325 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी।
16 मार्च 2020 तक इस प्रोजेक्ट के लिए टेंडर बुलाए गए थे। 12 जून को ये टेंडर चीनी कंपनी को मिल गया। जब भारत-चीन के बीच हिंसक झड़प हुई, तब तक टेंडर लगभग फाइनल हो चुका था और इस वजह से टेंडर को रद्द नहीं किया जा सकता था।

भारत और चीन के बीच क्या है सीमा विवाद?
भारत और चीन के बीच 61 साल से सीमा विवाद चल रहा है। जनवरी 1959 में चीन के तब के प्रधानमंत्री झोऊ इन-लाई ने पहली बार आधिकारिक रूप से सीमा विवाद का मुद्दा उठाया। झोऊ ने ये भी कहा कि वो 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को भी नहीं मानते।

मैकमोहन लाइन 1914 में तय हुई थी। इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव थे- सर हेनरी मैकमोहन। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची। इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया। इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा ही बताया था।

हालांकि, आजादी के बाद चीन ने दावा किया कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है और क्योंकि तिब्बत पर अब उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ। जबकि, भारत का कहना है कि जो भी ब्रिटिशों ने तय किया था, वही भारत भी मानेगा।

तब से ही भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है। दोनों देशों के बीच 1962 में एक युद्ध भी हो चुका है।

चीन के पास हमारी कितनी जमीन है?
भारत की चीन के साथ 3 हजार 488 किमी लंबी सीमा लगती है, जो तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है। ईस्टर्न सेक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है, जिसकी लंबाई 1 हजार 346 किमी है। मिडिल सेक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड है, जिसकी लंबाई 545 किमी है। और वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख आता है, जिसके साथ चीन की 1 हजार 597 किमी लंबी सीमा है।

चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार स्क्वायर किमी के हिस्से पर अपनी दावेदारी करता है। जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार स्क्वायर किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है। इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 स्क्वायर किमी चीन को दे दिया था। कुल मिलाकर चीन ने भारत के 43 हजार 180 स्क्वायर किमी पर कब्जा जमा रखा है। जबकि, स्विट्जरलैंड का एरिया 41 हजार 285 स्क्वायर किमी है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Delhi Meerut RRTS Project Explainer: Why China Shanghai Company Gets Contract? All You Need To Know About


Source From
RACHNA SAROVAR
CLICK HERE TO JOIN TELEGRAM FOR LATEST NEWS

Post a Comment

[blogger]

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget