पेपर वेस्ट से तैयार करती हैं धागा, फिर उसके फैब्रिक से बनाती हैं डेकोरेटिव आइटम्स, सालाना टर्नओवर 15 लाख रु.

पेपर वेस्ट के बारे में हम सब जानते हैं, लेकिन शायद ये नहीं जानते हैं कि प्लास्टिक की तरह पेपर इंडस्ट्री भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। भले ही हम आज पेपर लैस कल्चर की बात करें लेकिन विश्व भर में कागज की जरूरत को पूरा करने के लिए हर दिन पेड़ काटे जा रहे हैं।

कागज से बनने वाले ज्यादातर ऐसे प्रोडक्ट हैं जो वन टाइम यूज होते हैं, इसके बाद यह सीधा कचरे में मिलकर लैंड फिल साइट्स तक पहुंचते हैं। देश में कागज का उत्पादन काफी बड़े स्तर पर होता है लेकिन इसे रिसाइकल और रीयूज बहुत कम लोग ही करते हैं।

राजस्थान के जयपुर में रहने वाली नीरजा पालीसेट्टी उनमें से एक हैं जो पेपर वेस्ट को रिसाइकल कर खूबसूरत प्रोडक्ट्स तैयार कर रही हैं। नीरजा कागज के जरिए दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले कई खूबसूरत प्रोडक्ट बना रही हैं। इसके लिए वो पेपर इंडस्ट्री से बचने वाले वेस्ट पेपर का इस्तेमाल करती हैं।

इस तरह से कागज की बुनाई करने के उनके इनोवेटिव तरीके से बड़े स्तर पर कागज के कचरे का प्रबंधन करने में मदद मिल रही है। नीरजा कहती हैं, ‘मैं एक टेक्सटाइल इनोवेटर हूं और मुझे एकेडमिक और इंडस्ट्री में 18 साल का अनुभव है। हम ऐसा फैब्रिक​ तैयार करते हैं जो अन-कन्वेंशनल मटेरियल से बनता है।

आमतौर पर फैब्रिक लेनिन, वुल या कॉटन बेस्ड होता है। पर हम ये सब इस्तेमाल न करके अपने आसपास मौजूद पेपर वेस्ट की बुनाई करते हैं और इस पेपर वेस्ट का इस्तेमाल कर उसका धागा बनाते हैं। नीरजा बताती हैं, ‘मैं बुनकरों के परिवार से ताल्लुक रखती हूं। क्राफ्ट मुझे विरासत में मिला लेकिन मैं हमेशा ही पुरानी और बेकार चीजों से कोई उपयोगी चीज बनाती रहती थी।

मेरे पापा खुद एक नामी टेक्सटाइल डिजायनर रहे हैं, वो खुद NID से पढ़े हुए हैं और वहां पढ़ा भी चुके हैं। वो मेरे गाइड भी रहे हैं। आर्ट और क्राफ्ट के प्रति लगाव पिता से ही मिला है। उन्होंने अलग मटेरियल से एक्सप्लोर करने का बहुत शौक रहा है। उनकी गाइडेंस में ही मैंने रिसर्च की और समझ में आया कि पेपर वीविंग कोई नई तकनीक नहीं है।

नीरजा कहती हैं, 'मैं एक टेक्सटाइल इनोवेटर हूं और मुझे एकेडमिक और इंडस्ट्री में 18 साल का अनुभव है।'

ये काफी पुरानी जापानी पद्धति पर आधारित तकनीक रह चुकी है। अभी भी वहां कई आर्टिस्ट इस तकनीक पर काम करते हैं। मुझे इस आर्ट ने प्रभावित किया क्योंकि मुझे ये पेपर वेस्ट मैनेजमेंट का काफी अच्छा विकल्प लगा।’

नीरजा बताती हैं ‘मैं पेपर री-साइक्लिंग पर रिसर्च कर रही थी कि कैसे पेपर वेस्ट को उपयोगी उत्पाद बनाने के लिए काम में लिया जा सकता है। इस विषय पर मेरा एक रिसर्च पेपर भी पब्लिश हुआ है। मुझे जब जापान के पेपर वीविंग कॉन्सेप्ट के बारे में पता चला तो लगा कि इसे भारतीय परिवेश में इस्तेमाल किया जा सकता है।

मैंने सबसे पहले इसकी तकनीक को समझा और सीखा। फिर सबसे पहले मैंने खुद ही कागज के कचरे को इकट्ठा करके इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर प्रोसेस किया और फिर हैंडलूम पर खुद अपने हाथों से इससे धागा बनाया, जब प्रयोग सफल रहा तो मैंने स्टार्टअप की नींव रखी।’

करीब 10 साल तक पेपर वीविंग तकनीक पर रिसर्च के बाद 2016 में नीरजा ने ‘सूत्रकार क्रिएशन’ की शुरुआत की। नीरजा कहती हैं कि एक दिन मैं, मेरे पापा और मेरे पति बैठे और तय किया कि नाम क्या होगा। हम इंग्लिश टू हिंदी, इंग्लिश टू संस्कृत डिक्शनरी लेकर बैठे। मुझे कुछ ऐसा नाम रखना था जो हमारे भारतीय कल्चर और साथ ही हमारे काम को रि-प्रेजेंट करे।

तो कई नामों के बाद सूत्रकार पर आए। सूत्रकार का अर्थ होता है जो बुनाई करता है। और दूसरा है सूत्रों को आकार देना। पेपर पर लिखा हुआ भी सूत्र होता है और हम उसको आकार देते हैं। और हम अपने स्टार्टअप के जरिए कागज की बुनाई करके ही प्रोडक्ट्स तैयार करते हैं।

नीरजा के इस स्टार्टअप ने अपने सपनों को तो हकीकत में बदला ही साथ ही उन लोगों को भी काम दिया जो चरखा चलाकर बुनाई का काम करते हैं। नीरजा के स्टार्टअप में तीन वीवर, एक हेल्पर और 4 इंटर्न हैं। इसके अलावा तीन महिलाएं भी हैं जो घर बैठे चरखे से कागज का धागा बनाकर देती हैं।

कागज के इस धागे को बुनकर आर्टिसन फैब्रिक बनाते हैं, जिससे आगे नए-नए प्रोडक्ट्स बनाए जा रहे हैं। सूत्रकार क्रिएशन्स आज के समय में 40 से ज्यादा तरह के प्रोडक्ट्स तैयार करता है।

नीरजा के स्टार्टअप में तीन वीवर, एक हेल्पर और 4 इंटर्न हैं। इसके अलावा तीन महिलाएं भी हैं जो घर बैठे चरखे से कागज का धागा बनाकर देती हैं।

नीरजा कहती हैं, ‘अमूमन लोग सोचते हैं कि कागज के बने प्रोडक्ट ज्यादा मजबूत नहीं होते हैं। मैं बताना चाहूंगी कि पेपर जितना वर्सेटाइल और कोई और मटेरियल नहीं होता है। आप अखबार को पानी में डुबो दें तो भी वो पूरी तरह से नहीं गलता है। और जब इसे काटकर ट्विस्ट और स्पिन करते हैं तो और भी स्ट्रॉन्ग हो जाता है फिर उसकी स्ट्रेंथ कपड़े नुमा ​ही होती है। जब कागज से धागा बनाया जाता है और फिर फैब्रिक तो यह काफी मजबूत हो जाता है।’

नीरजा कागज से क्लच, लैंपशेड,फोटो फ्रेम, बुकमार्क, डायरी, स्केच बुक, पेनस्टैंड आदि बना रहीं हैं। इन प्रोडक्ट्स की कीमत 300 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए तक है। नीरजा कहती हैं कि भारत में एक क्लास और सेगमेंट के लोग ही हमारे प्रोडक्ट को खरीदते हैं, विदेशों से ज्यादा आर्डर आते हैं। मास मार्केट तक पहुंचने के लिए हमें अभी और बड़े स्तर पर आना होगा, तब जाकर कीमतें कम होंगी, इसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं।

नीरजा अपने प्रोडक्ट्स के रॉ मटेरियल स्क्रैप डीलर और पेपर इंडस्ट्री से लेती हैं। इसके अलावा वो घरों से भी अखबार इकट्ठा करतीं हैं। वो कहती हैं कि आपके आस-पास ही कई मौके होते हैं बस आपको इन मौकों पर ध्यान देने और इन पर काम करने की जरूरत है।

सूत्रकार क्रिएशंस का पिछले साल का टर्नओवर करीब 15 लाख रुपए रहा था। इस बार उससे 25 प्रतिशत और ज्यादा की उम्मीद है। क्योंकि अब लोगों में सस्टेनेबल के प्रति अवेयरनेस बढ़ी है। ऐसे में हमारे बनाए प्रोडक्ट लोगों को काफी फैसिनेट करते हैं। इसके अलावा दूसरी वजह यह भी है कि पेपर फैब्रिक पर कोविड वायरस नहीं रहता है। इसको सैनिटाइज करने मात्र से यह बैक टू नॉर्मल हो जाता है।



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राजस्थान के जयपुर में रहने वाली नीरजा पालीसेट्टी पेपर वेस्ट को रिसायकल कर खूबसूरत प्रोडक्टस तैयार करती हैं।


Source From
RACHNA SAROVAR
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