कहानी - श्रीराम के पिता राजा दशरथ अपनी सभा में बैठे हुए थे। वे सबसे सुझाव ले रहे थे कि क्या राम को राजा बना दिया जाए? सुझावों के साथ-साथ लोग उनकी तारीफों के पुल भी बांध रहे थे। जब दशरथ की बहुत तारीफ होने लगी तो दशरथ ने भरी सभा में आईना निकाला और अपना चेहरा देखने लगे। सबको आश्चर्य हुआ, दशरथ ऐसा कभी नहीं करते थे, लेकिन उस दिन उन्होंने ऐसा किया।
सभी जानते थे कि दर्पण एकांत में देखा जाता है। सबके सामने आईना देखना अभद्रता है, लेकिन दशरथ देख रहे थे। उन्हें दिखा कि उनके कान के पास के बाल सफेद हो गए हैं और मुकुट थोड़ा तिरछा हो गया। उन्होंने मुकुट को सीधा किया और कान के पास सफेद बालों से ये समझ लिया कि बुढ़ापा अब आ रहा है। अब सत्ता नई पीढ़ी को सौंप दी जाए और उन्होंने श्रीराम के राजतिलक का निर्णय ले लिया।
बाद में किसी ने उनसे अकेले में पूछा कि सबके सामने आप आईना क्यों देख रहे थे? उन्होंने जवाब दिया "लोग मेरी तारीफ कर रहे थे और मैंने दिल के आईने में देखा कि क्या सचमुच मैं इस लायक हूं? मेरा मुकुट थोड़ा तिरछा हो गया है, यानी व्यवस्था अब एक नई व्यवस्था की मांग कर रही है और मैंने राम के लिए निर्णय ले लिया।"
सबक - जब भी कोई आपकी तारीफ करे, अपने दिल के आईने में जरूर देखना चाहिए कि क्या आप इस योग्य हैं? क्योंकि आप क्या हैं, ये आपसे अच्छा कोई नहीं जान सकता है। लोग जो देखते हैं, वह कहते हैं, लेकिन आप जो होते हैं, वह आप ही जानते हैं।
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Source From
RACHNA SAROVAR
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