एजुकेशन के लिए परिश्रम, लगन और साधन के साथ ही भाषा और लक्ष्य भी स्पष्ट होना चाहिए

कहानी- डॉ. भीमराव अंबेडकर के छात्र जीवन से जुड़ी घटना है। अंबेडकर अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय वे एक मात्र विद्यार्थी थे, जो यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में सबसे पहले पहुंचते थे और लाइब्रेरी बंद होने तक लगातार पढ़ते रहते थे। कभी-कभी वे ज्यादा समय भी वहां रुकते थे।

लाइब्रेरी का एक कर्मचारी हर रोज अंबेडकर को देखता था। एक दिन उसने अंबेडकर से कहा, 'मैं आपको रोज देखता हूं। आपकी उम्र के यहां कई लोग हैं, वे पढ़ाई के अलावा अन्य काम भी करते हैं। वे मौज-मस्ती भी करते हैं, लेकिन आप हमेशा पढ़ाई ही करते हैं, ऐसा क्यों?'

अंबेडकर बोले, 'मुझे बहुत पढ़ना है, क्योंकि मेरे पास वर्तमान शिक्षा के लिए भविष्य का एक बड़ा लक्ष्य है। मैं केवल अपने लिए पढ़ाई नहीं कर रहा हूं। भारत में मुझसे जुड़े कई लोग हैं, मुझे उनके लिए इसी शिक्षा से बहुत कुछ करना है।'

अंबेडकर की बातें सुनकर कर्मचारी हैरान रह गया। उसने सोचा कि शिक्षा का दूरगामी लक्ष्य लेकर भी कोई विद्यार्थी इस तरह पढ़ाई कर सकता है। कर्मचारी ने ये देखा कि अंबेडकर अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं की किताबें भी बहुत ध्यान से पढ़ते थे। ये देखकर वह और ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया।

काफी समय बाद भारत में अंबेडकर और लालबहादुर शास्त्री के बीच संस्कृत में वार्तालाप हुआ तो उन्हें देखकर सभी चौंक गए थे। अंबेडकर का संस्कृत ज्ञान भी बहुत बेहतरीन था।

सीख- हमारे लिए अंबेडकर की सीख यही है कि भारत में शिक्षा का सदुपयोग तब ही हो पाएगा, जब यहां के विद्यार्थी परिश्रम, लगन, साधन के साथ ही लक्ष्य और भाषाएं भी स्पष्ट होंगी।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, motivational story of bhimrao ambedkar, life management tips for students


Source From
RACHNA SAROVAR
CLICK HERE TO JOIN TELEGRAM FOR LATEST NEWS

Post a Comment

[blogger]

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget