उत्तराखंड के टिहरी जनपद स्थित जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवी का मंदिर है। ये तीर्थ लगभग 10,000 फीट की ऊंचाई पर, कनताल से करीब 8 किमी दूर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई करीब तीन हजार मीटर मानी जाती है। सुरकंडा देवी के मंदिर का जिक्र स्कंदपुराण में भी मिलता है। ये मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। नवरात्र में यहां के दर्शन का विशेष महत्व है। स्थानीय लोगों का मानना है कि नवरात्र में देवी काली की पूजा और दर्शन करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
51 शक्तिपीठ में एक है ये तीर्थ
सुरकंडा देवी एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर से सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री यानी चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं। यह एक ऐसा नजारा है जो कि दुर्लभ है। इसी परिसर में भगवान शिव और हनुमानजी को समर्पित मंदिर भी है। माना जाता है कि नवरात्रि और गंगा दशहरे के मौके पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है।
यहां गिरा था देवी सती का सिर
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस जगह गिरा था, इसलिए इस तीर्थ को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है। सती के शरीर भाग जिस जिस स्थान पर गिरे थे इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है।
औषधि पत्तों का प्रसाद
सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।
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Source From
RACHNA SAROVAR
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