डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस दोनों के लिए चुनौती बन सकता है अबॉर्शन कानून, ज्यादातर लोग पाबंदियों के साथ गर्भपात को मंजूरी देने के पक्ष में

जोशुआ हॉन को सुप्रीम कोर्ट में दूसरी ओपन सीट मिलने की उम्मीद थी। यह उनके लिए ऐसा पल था, जिसका वो राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए वोट करने के बाद चार सालों से इंतजार कर रही थीं। उन्होंने कहा- मैं यह नहीं कहूंगी कि मैं ट्रम्प से प्यार करती हूं, लेकिन मेरा मानना है कि अबॉर्शन बच्चों की जान ले रहा है। 35 साल की हॉन नॉर्थ कैरोलिना की डरहम काउंटी में रहती हैं।

सैकंड़ों मील दूर सिनसिनाटी के एक रिहायशी इलाके में जूली वोमैक के फोन की घंटियां बजनी बंद नहीं हो रहीं। उनकी महिला दोस्तों की ओर से मैसेज आ रहे हैं। वे इस बात से चिंतित हैं कि जस्टिस रूथ बैडर गिन्सबर्ग की मौत के साथ ही उनका ऐसा हक भी मारा जाएगा, जो उनके हिसाब से कभी खत्म नहीं होना चाहिए। जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत को लेकर अमेरिकाभर में प्रदर्शन हुए थे। वे कानूनी ढंग से अबॉर्शन के पक्ष में थीं।

वोमैक कहती हैं- हमें और ज्यादा मुखर होकर और जोर से आवाज उठानी होगा। हमें अपने हक के लिए खड़ा होना होगा और जस्टिस गिन्सबर्ग की जगह लेनी होगी। 52 साल की वोमैक अबॉर्शन से जुड़े अधिकारों की कट्‌टर समर्थक हैं और ट्रम्प का विरोध करती हैं।

महीनों तक ठंडे बस्ते में रहा अबॉर्शन का मुद्दा

दुनियाभर में महामारी, आर्थिक संकट और नस्लीय भेदभाव को लेकर प्रदर्शन हो रहे थे। ऐसे में महीनों तक अबॉर्शन का मुद्दा प्रेसिडेंशियल कैंपेन के दौरान ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हालांकि, जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत और उनकी जगह किसी और को देने पर छिड़ी बहस के बीच यह मुद्दा उठ रहा है। कैंडिडेट इलेक्शन से करीब छह हफ्ते पहले इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा के लिए मजबूर हो सकते हैं। यह दोनों पक्षों (डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस) के लिए राजनीतिक जोखिम साबित हो सकता है, जबकि यह मुद्दा ऐसा है जिससे दोनों पार्टियों के वोटर्स जुड़े हुए हैं।

ज्यादातर अमेरिकी कानूनी ढंग गर्भपात के पक्ष में

गर्भपात पर एक्टिविस्ट्स की तुलना में आम लोगों का रवैया थोड़ा नरमी भरा है। ज्यादातर अमेरिकी कहते हैं कि कुछ पाबंदियों के साथ अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी मिलनी चाहिए। अगर इस पर लड़ाई बढ़ती है तो यह दोनों पार्टियों के कस्बाई वोटर्स को उनसे दूर कर सकता है। इसकी वजह है कि अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी दिलाने और इसके खिलाफ की लड़ाई में सभी पार्टियों के वोटर्स शामिल हैं। खासतौर पर इसे लेकर डेमोक्रेट्स की चिंता है कि वे एक ऐसे मुद्दे को कैसे आगे ले जाएंगे, जिसे लेकर उनके राष्ट्रपति कैंडिडेट जो बाइडेन निजी तौर पर सहज नहीं रहे हैं।

बाइडेन और ट्रम्प दोनों ने मुद्दे को हल्के में लिया
शुक्रवार को जस्टिस गिन्सबर्ग की मौत के बाद ट्रम्प और बाइडेन ने इस मुद्दे को हल्के में लिया है। बाइडेन कैंपेन राजनीतिक तौर पर जोखिम भरा माने जाने वाले ‘अफोर्डेबल केयर एक्ट’ के मुद्दे को हवा देने की कोशिश में हैं। वे इस बीमा योजना कवरेज में सभी बीमारियों के इलाज का कवरेज शामिल करने की मांग कर रहे हैं। ऐसी बीमारियों का भी जिससे लोग बीमा योजना में जुड़ने से पहले से जूझ रहे हैं। वहीं ट्रम्प अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले गिन्सबर्ग की जगह किसी नए जस्टिस को नियुक्त करने पर फोकस कर रहे हैं।

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों पर है दबाव

हालांकि, दोनों पार्टियों पर अबॉर्शन का मुद्दा उठाने का दबाव है, क्योंकि यह उनके वोटर्स बेस से जुड़ा एक अहम मामला है। इसके साथ ही मौजूदा समय में इन पार्टियों का बहुत कुछ दांव पर है। देश में गर्भपात को करीब 50 साल पहले वैध बनाया गया था। इसके बाद से अब तक लोगों के लिए गर्भपात कराना ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान सबसे ज्यादा कठिन रहा। देश के पांच राज्यों मिसीसिपी, मिसौरी, नॉर्थ डकोटा, साउथ डकोटा और वेस्ट वर्जीनिया स्टेट में फिलहाल सिर्फ एक ही अबॉर्शन क्लीनिक है।

यह ट्रम्प के लिए हो सकता है अहम मौका

सामाजिक रूढ़िवादी रणनीतिकार इस मुद्दे के अचानक उठने को ट्रम्प के लिए एक अहम मौके के तौर पर देखते हैं। मौजूदा वक्त में ट्रम्प चुनाव में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में रणनीतिकारों का मानना है कि इससे एरिजोना समेत कई दूसरे इलाकों में इस मुद्दे को जरिए रिपब्लिकंस वोटर्स को प्रेरित करने में मदद मिलेगी। इनमें ऐसे वोटर्स शामिल होंगे जो अब तक ट्रम्प की ओर से एबसेंटी बैलट का इस्तेमाल करने की सलाह मानने के झांसे में नहीं आए होंगे।

अबॉर्शन मुद्दे से दूसरे मुद्दों से फोकस हटेगा

फैमिली रिसर्च काउंसिल के प्रेसिडेंट टोनी पर्किंस के मुताबिक, यह राजनीतिक तस्वीर को बड़े पैमाने पर बदलकर रख देगा। इसकी वजह से कोरोनावायरस से फोकस हट जाएगा। इसके अलावे और भी बहुत सारे चीजों से ध्यान बंट जाएगा। पारंपरिक तौर पर सोशल कंजरवेटिव्स के लिए अबॉर्शन राजनीतिक प्रेरणा की एक मजबूत वजह रहा है। इनमें से कई सिर्फ इसी मुद्दे पर वोट करने वाले वोटर्स है जिनका मानना है इससे किसी भी हाल में समझौता नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि कुछ डेमोक्रेट्स मानते हैं कि अब राजनीतिक संतुलन शिफ्ट हो चुका है। रिपब्लिकन स्टेट लैजिस्लेटर की ओर से पिछले साल पारित हुए कानूनों का विरोध किया जाना यह साबित करता है।

‘महिला वोटर्स का उभरना ट्रम्प के लिए खतरा’

महिला वोटर्स का उभर कर आने से भी ट्रम्प के विरोध में एक तबका खड़ा हुआ है। 2018 के मिडटर्म में यह खासतौर पर देखा गया। उस समय कस्बाई महिला वोटर्स ने अपने डिस्ट्रिक्ट्स में डेमोक्रेट्स को जीत दिलाने में मदद की। इस साल सीनेट की किस्मत पर्पल स्टेट यानी कि नार्थ कैरोलिना, मैने और एरिजोना पर निर्भर है। इन जगहों पर अबॉर्शन पॉलिसीज डेमोक्रेट कैंडिडेट के लिए मददगार साबित हो सकती हैं।अबॉर्शन राइट्स ऑर्गनाइजेशन की प्रेसिडेंट इलिस हॉग के मुताबिक, डेमोक्रेटिक और इंडिपेंडेंट फिमेल वोटर्स अबॉर्शन को मुख्य तौर पर एक अहम स्वास्थ्य सेवा मानते हैं। हालांकि, वे इस नजरिए से भी देखते हैं कि इस मुद्दे पर उनके चार साल बर्बाद हो गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में नई नियुक्तियों को लेकर भी शंकाएं

हॉग कहती हैं- मौजूदा समय में महिलाओं को महसूस होता है कि उनपर हमला हो रहे हैं और उन्हें नीचा दिखाया जा रहा है। ऐसे में अबॉर्शन का अधिकार समाज में महिलाओं को स्थान दिलाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है। सोशल कंजरवेटिव मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में छठें कंजरवेटिव जस्टिस की नियुक्ति दशकों पुरानी रो वी वेड के प्रोजेक्ट को खत्म करने के लिए होगी। रो वी वेड ने ही देश में अबॉर्शन को वैध बनाने का ऐतिहासिक आदेश दिया था।

पिछले साल कई राज्यों में गर्भपात से जुड़े 58 कानून बनेपिछले साल 6 महीने के अंदर कई राज्यों में अबॉर्शन पर पाबंदियों से जुड़े 58 कानून बनाए गए। इनमें छह महीने के भ्रूण के गर्भपात को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया। यह समय इतना कम है कि इससे पहले तक महिलाओं को पता ही नहीं चलता कि वे प्रेगनेंट हैं। वहीं, ट्रम्प में विश्वास रखने वाले लेफ्ट विचारधारा का समर्थन करने वाले मानते हैं कि अगर मजबूत कंजर्वेटिव मेजॉरिटी में आते हैं तो वे कोर्ट के जरिए अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म करवा देंगे। यह बात एक्टिविस्ट के लिए काफी दुखद होगा जिनके हिसाब से यह महिलाओं के लिए अपमानित करने वाला और उन्हें कमजोर बनाने वाला कदम होगा।

1975 से अब तक जस का तस है अबॉर्शन का मुद्दा
अबॉर्शन के मुद्दे पर लोगों की राय इस पर हो रही राजनीति से अलग है। अब सब कुछ इस पर है कि इससे जुड़े सवाल कैसे पूछे जाते हैं। 1975 से लेकर अब तक यह मुद्दा जस का तस बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि अबॉर्शन को कानूनी मंजूरी मिलनी चाहिए लेकिन प्रेगनेंसी के एक निश्चित समय बाद इसकी इजाजत नहीं होनी चाहिए। इस मुद्दे पर सहमती रखने वाले वोटर्स की संख्या भी 2012 के बाद नहीं बदली है। गॉलअप की ओर से मई में किए गए सर्वे के मुताबिक 26% रिपब्लिकंस और 27% डेमोक्रेट्स मानते हैं कि कैंडिडेट अबॉर्शन उनकी राय मानने वाला हो।

बाइडेन भी अबॉर्शन के मुद्दे पर पीछे हट रहे

बाइडेन हमेशा से यह दिखाने के लिए जूझते रहे हैं कि वे अपनी पार्टी की तरह कैथोलिक इसाई रीति रिवाजों को मानने वाले हैं। उनकी पार्टी ने अपने अब तक के राजनीतिक इतिहास में हमेशा ही बहुत मामूली पाबंदियों के साथ गर्भपात को मंजूरी देने का पक्ष लिया है। बाइडेन पिछले साल देश अबॉर्शन के लिए दी जाने वाली फंडिंग को रोकने के लिए बाइडेन हैड एमेंडमेंट लाने का समर्थन करने से पीछे हट गए थे, जबकि वे पिछले एक दशक से इसके समर्थन में थे। रविवार को बाइडेन ने फिलाडेल्फिया में सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की, लेकिन उन्होंने अबॉर्शन राइट्स पर कुछ भी नहीं कहा।



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इस साल जनवरी में अबॉर्शन का समर्थन करने और इसका विरोध करने वाले लोग वॉशिंगटन में एक रैली के दौरान आमने- सामने आ गए थे।- फाइल फोटो


Source From
RACHNA SAROVAR
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