यहां पीढ़ियां निभाती हैं मित्रता, लेकिन मित्र का नाम लेना पाप, उसे महाप्रसाद या फूल-फुलवारी बुलाते हैं

(यशवंत साहू) छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का मरकाकसा गांव। यह गांव मित्रता के रिश्तों के लिए प्रसिद्ध है। जैसे हम लोग नामकरण, शादी सहित 16 संस्कार विधि-विधान से निभाते हैं, वैसे ही यह गांव मित्रता को संस्कार की तरह निभाता है। इसकेे लिए विशेष पर्व या अवसरों को चुना जाता है, ताकि रस्म अधिक से अधिक लोगों के बीच में निभाई जा सके। गांव की सरपंच ईश्वरी ठाकुर बताती हैं कि 190 घरों के इस गांव में हर घर में मितान यानी मित्र हैं।

यहां मित्रता पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाई जाती है। आसपास के गांवों में भी यह परपंरा है। कई लोगों के मित्र महाराष्ट्र के गांवों में भी हैं। खास बात यह है कि एक बार जब आप किसी को मितान बना लेते हैं तो फिर उसका नाम नहीं ले सकते। नाम लेने पर पंचायत में नारियल और पैसों का जुर्माना देना होता है। जरूरत पड़ने पर लोग मितान का नाम लिखकर ही बताते हैं। बोलचाल में मित्र काे महाप्रसाद, गंगाजल, तुलसीजल या फूल-फुलवारी कहा जाता है। 90 साल के भूषण बताते हैं- "महाराष्ट्र के चिल्हाटी गांव में मेरे महाप्रसाद (अगनू) हैं। जब मैं 7 साल का था, तब कबड्डी खेलने गांव-गांव जाता था। वहीं उनसे मिला था। हर सुख-दुख में हम साथ खड़े रहते हैं।' वे बताते हैं कि महिला और पुरुष दोनों मितान बना सकते हैं, लेकिन पुरुषों के मित्र पुरुष व महिलाओं की महिला ही होती हैं।

यह रिश्ता परिवारों के बीच जुड़ जाता है। इधर राजकुमार बताते हैं कि वे और कौड़ीकसा गांव के शत्रुघ्न रोजी-रोटी की तलाश में आंध्रप्रदेश गए थे। शत्रुघ्न परछाई की तरह हमेशा उनके साथ रहे। हर विपदा से साथ निपटे। ऐसे ही राधेलाल हैं। उनके मितान भी महाराष्ट्र के हैं। दोनों को बैलगाड़ी रेस का शौक था। एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी थे। लेकिन रिश्ता दोस्ती में बदल गया और अब दोनों 40 साल से मितान हैं।

गणेशजी और गौरी के समक्ष दोस्ती की रस्म, अरेंज फ्रेंडशिप का भी चलन

  • दोस्ती के रिश्ते को पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलाने के लिए बुजुर्ग अपने बच्चों का मितान तय कर देते हैं। इसे अरेंज फ्रेंडशिप भी कह सकते हैं। गांव की रांजी बताती हैं कि 13 की उम्र में घरवालों के कहने पर महाराष्ट्र के मोहगांव में उन्होंने महाप्रसाद बनाई थी।
  • रिश्तेदार एक-दूसरे के फूल-फुलवारी नहीं बन सकते। अधिकतर लोग जाति, धर्म और गांव से बाहर ही फूल-फुलवारी बनाते हैं।
  • कुछ लोग गांव के बैगा (धार्मिक क्रिया कराने वाले) या नाई को रस्म पूरी करने के लिए बुलाते हैं। देवी गाैरी और उनके पुत्र गणेश के सामने पांच मिनट की रस्म होती है।
  • रस्म में दोस्त आमने-सामने लकड़ी के पटले पर बैठते हैं। सिंदूर, नारियल, पैसों और धान का लेन-देन होता है। एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाते हैं। पान खिलाते हैं। दोस्त के पिता को फूल बाबू और मां को फूल दाई कहा जाता है।


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जेलसिंह और राजकुमार कंवर ने बचपन में ही दोनों ने गांव में ही महाप्रसाद बनाया था।


Source From
RACHNA SAROVAR
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