इस बार ओटीटी पर एक साथ पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं, क्या दर्शक एक वीकेंड पर पांच फिल्में देख सकते हैं?

अलग -अलग ओवर द टॉप (ओटीटी) माध्यमों पर इस वीकेंड पांच फिल्में रिलीज हो रही हैं। ‘शकुंतला देवी’ एमेजॉन पर आ रही है। ‘रात अकेली है’ नेटफ्लि‍क्स, ‘यारा’ जी5 पर, ‘माई क्लाइंट्स वाइफ’ शेमारूमी पर और ‘लूटकेस’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर आ रही है।

ये फिल्म प्रदर्शन शैली सिनेमाघरों वाली मारामारी की याद दिला रही है, जहां किसी बड़े वीकेंड पर दो या तीन फिल्में एक साथ रिलीज होती थीं। सालभर मेंं हमारे देश में लगभग 1000 से 1400 फिल्में रिलीज होती हैं और रिलीज के वीकेंड मात्र 52 होते हैं, ऐसे में थिएटर्स में तो यह भीड़भाड़ समझ आती है, लेकिन ओटीटी तो बिल्कुल अलग तरह का माध्यम है। वहां एक बार फिल्म आने के बाद स्थायी रूप से उपलब्ध रहती है। ऐसे में एक वीकेंड पर पांच फिल्में रिलीज़ करने का औचित्य समझ से परे है, मैं हैरान हूं कि एक साथ रिलीज के पीछे क्या तर्क और बिज़नेस स्ट्रेटजी है?

ओटीटी पर रिलीज करना और उनका प्रचार करके फिल्म के बारे में दर्शकों को बताना दो अलग बातें हैं। बड़े स्टार्स वाली ‌बड़ी फिल्म तो इस तरह अपनी मौजूदगी दर्ज करा लेंगी, लेकिन छोटी फिल्म्स फिर भीड़ में खो जाएंगी। शकुंतला देवी में विद्या बालन हैं, ऊपर से एमेजॉन जैसा प्लेटफॉर्म है। ऐसे में इस फिल्म को तो भरपूर पब्लिसिटी मिल गई है। यही अनुकूल परिस्थिति ‘रात अकेली है’ के साथ है। यहां बड़े नाम हैं। नवाज हैं, राधिका आप्टे भी हैं। मगर बाकी का क्या? सवाल है कि अगर फिल्में बनाने में काफी प्लानिंग होती है, तो रिलीज करने को लेकर बेहतर प्लानिंग क्यों नहीं हो सकती।

यह प्रगतिशील सोच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म करोड़ों घरों तक पहुंचेगी, लेकिन अगर लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कोई फिल्म किसी प्लेटफॉर्म पर आई है कि नहीं, ऐसे में वह सफल कैसे होगी। ओटीटी पर ही लोगों के पास अनगिनत विकल्प हैं। ऐसे में ये फिल्म ही देखी जाएंगी, कैसे तय होगा।

सिनेमाघरों के दोबारा खुलने पर यकीनन सब पहले जैसा हो जाएगा। पर इन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लिए नई बदलाव वाली रणनीति होनी चाहिए। दर्शकों के साथ संदेश आदान-प्रदान के नवीन तरीके विकसित होने चाहिए। जहां तक दर्शकों को दूसरे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ फिल्मों के पता चलने का सवाल है, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन इसमें यह तय नहीं होता कि वह अपना प्लेटफॉर्म बदलकर उस फिल्म के लिए दूसरे माध्यम पर जाए। थिएटर्स में वीकेंड्स पर चार-पांच फिल्में आती थीं, उस स्थिति में किसी को फायदा नहीं होता था। यही चीज़ इन माध्यमों पर दोहराई जा रही है। जब इतना शोर होगा, तो दर्शक भी कन्फ्यूज हो जाएगा।

अगर वाकई मनोरंजन की दुनिया बदल रही है, तो जाहिर तौर पर रिलीज की रणनीति भी अलग होनी चाहिए। इसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं जैसे कि शुक्रवार के अलावा नए कंटेंट के लिए आप मंगलवार आ सकते हैं। ताकि शुक्रवार से सोमवार तक लोग एक कंटेंट देख लें। मंगलवार से दूसरा कंटेंट देखें। ऐसे में एक ही टाइम पर रिलीज की मारामारी नहीं रहेगी। इसमें हर्ज क्या है? मैं भी डिजिटल पर ही काम करती हूं। यहां मालूम नहीं होता कि कौन सी चीज क्लिक कर जाए। जैसा फिल्मों के साथ भी है कि नहीं मालूम कौन सी चल जाए।

दुनियाभर में फिल्में शुक्रवार को रिलीज़ करने का रिवाज़ रहा है, मगर शुक्रवार का इंतजार जरूरी नहीं। आज ज्यादातर काम वर्क फ्रॉम होम हो रहा है। क्या पता लोग बुधवार को ही कंटेंट देख लें! अगर रविवार की दोपहर को कंटेंट रिलीज़ करते हैं, तो इससे ओटीटी माध्यमों को क्या फर्क पड़ेगा? एक ही वीकेंड पर कौन इतनी फिल्में देख पाएगा। ऐसे में एक दो तो मिस होने वाली हैं। जो फिल्में मैं देख पाती, वह मिस होगी। इसमें फायदा किसका है? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
अनुपमा चोपड़ा


Source From
RACHNA SAROVAR
CLICK HERE TO JOIN TELEGRAM FOR LATEST NEWS

Post a Comment

Emoticon
:) :)) ;(( :-) =)) ;( ;-( :d :-d @-) :p :o :>) (o) [-( :-? (p) :-s (m) 8-) :-t :-b b-( :-# =p~ $-) (b) (f) x-) (k) (h) (c) cheer
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.

MKRdezign

Contact Form

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget