दो जुलाई 2019 की बात है। ठीक एक साल पहले इलाहाबाद से भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने इस दिन देश के रक्षा मंत्री को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने सियाचिन में तैनात भारतीय जवानों को मिलने वाले कपड़ों की गुणवत्ता पर उठ रहे सवालों का जिक्र किया था। साथ ही उन्होंने इस मामले में जरूरी कार्रवाई करने की अपील रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से की थी।
भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने अपनी ही सरकार को यह पत्र इसलिए लिखा क्योंकि उन्हें कुछ शिकायतें मिली थी। ऐसी शिकायतें जो सियाचिन में तैनात जवानों को मिलने वाले उपकरणों की खरीद पर गंभीर सवाल खड़े कर रही थी। दरअसल, यह पत्र लिखे जाने से लगभग दो हफ्ते पहले ही भारतीय सेना की एमजीओ (मास्टर जनरल ऑर्डिनेन्स) ब्रांच ने एक टेंडर जारी किया था। इस टेंडर के अनुसार सियाचिन जैसे इलाकों में तैनात जवानों के लिए कुछ स्नो सूट खरीदे जाने थे। इसी खरीद में होने वाली संभावित गड़बड़ियों की सूचना रीता बहुगुणा जोशी को मिली थी।
यह कोई पहला मौका नहीं था, जब रक्षा मंत्री के कार्यालय को स्नो सूट की खरीद में होने वाली गड़बड़ियों के बारे में चेताया गया हो। इससे पहले भी देश के रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को ऐसी कई शिकायतें मिल चुकीं थीं। भारतीय सेना को स्नो सूट सप्लाई करने वाली एक कंपनी पर बीते कई सालों से सवाल उठ रहे थे। इस कंपनी के स्नो सूट की लगातार शिकायतें आ रही थी, कंपनी पर वित्तीय गड़बड़ियां करते हुए भारत सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाने के आरोप थे और इसके बाद भी यह कंपनी लगातार टेंडर हासिल करती जा रही थी।
यही कारण था कि जब जून 2019 में भारतीय सेना ने एक बार फिर से टेंडर जारी किया तो इस मामले पर नजर रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देश के रक्षा मंत्री को चेताया। लिहाजा यह खरीद कुछ समय के लिए तो टाल दी गई लेकिन शिकायतकर्ताओं की आशंका आज भी अपनी जगह बनी हुई है। उनका आरोप है कि इस कंपनी की पैठ इतनी मजबूत है कि कई विवादों से घिरने के बाद भी यह कंपनी ब्लैकलिस्ट होना तो दूर, भविष्य में दोबारा टेंडर हासिल करने में कामयाब हो सकती है।
इन आशंकाओं को बल मिलने के कई कारण हैं। इन कारणों को समझने की शुरुआत वहीं से करते हैं जहां से इस पूरे मामले की शुरुआत हुई थी..
24 अगस्त 2015 के दिन श्रीलंका के निवासी एस सत्यजीत ने भारत के रक्षा मंत्रालय को एक गोपनीय पत्र भेजा। इसमें उन्होंने बताया कि कैसे श्रीलंकाई कंपनी ‘रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड’ भारतीय सेना को खराब गुणवत्ता के उत्पाद बेच कर धोखा दे रही है। ये वही कंपनी थी जो सियाचिन में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के उत्पाद भारतीय सेना को बेच रही थी। एस. सत्यजीत खुद लंबे समय तक इस कंपनी में एक वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर काम कर चुके थे।
सत्यजीत ने लिखा था, "साल 2008 और 2009 में हुए परीक्षण और फील्ड ट्रायल के दौरान तो कंपनी ने उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद भेजे थे लेकिन प्रोडक्शन के दौरान उसने निम्न गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाए। लिहाजा 2012 से लेकर 2015 तक इस कंपनी ने भारतीय सेना को घटिया उत्पाद बेचकर दो मिलियन डॉलर से भी ज्यादा का चूना लगाया है।"
यह पत्र भेजने के करीब चार महीने बाद भी जब कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो 28 दिसंबर 2015 को सत्यजीत ने दूसरा पत्र रक्षा मंत्रालय को भेजा। इसमें उन्होंने लिखा, "मेरी शिकायत के बाद कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग के अधिकारी ने मुझसे संपर्क किया था और इस मामले की सारी जानकारी ली थी। उन्होंने एक महीने के भीतर ही मुझसे मिलने को भी कहा था, लेकिन उस दिन के बाद से न तो उन्होंने मुझसे कोई सम्पर्क किया और न ही किसी और ने मेरी इस शिकायत का संज्ञान लिया।"
इस पत्र में सत्यजीत ने आगे लिखा, "जब रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का भारत सरकार से सौदा तय हुआ था, उस वक्त भारत में यूपीए की सरकार थी। लेकिन अब भारत में भाजपा की सरकार है और मुझे उम्मीद थी कि इस सरकार में जालसाजी करने वाली रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन, मुझे हैरानी है कि नई सरकार भी इस भ्रष्ट कंपनी और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में आनाकानी कर रही है।"
सत्यजीत ने रक्षा मंत्रालय को चेताया भी था कि अगर इस कंपनी के खिलाफ अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो भविष्य में यह भारतीय सेना के साथ और भी बड़ा धोखा कर सकती है। सत्यजीत की यह चेतावनी आगे जाकर सही साबित हुई। जुलाई 2017 को रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड ने भारतीय सेना से एक और टेंडर हासिल कर लिया। इस बार यह मामला पहले से भी ज्यादा गंभीर था क्योंकि अब तक कई शिकायतें रक्षा मंत्रालय तक पहुंच चुकी थी, राष्ट्रीय मीडिया में भी इस बारे में खबरें प्रकाशित हो चुकी थी और खुद भारतीय सेना की आंतरिक रिपोर्ट्स में भी रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड के उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो चुके थे।
22 जून 2015 को जारी हुई भारतीय सेना की एक आंतरिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखा गया था कि "सियाचिन ग्लेशर के कई हिस्सों में रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड के स्नो सूट कारगर साबित नहीं हुए हैं।" इसके अलावा भारतीय सेना की उत्तरी कमांड के कमांडर लेफ्टिनें जनरल पट्याल भी डीजीक्यूए को पत्र लिखकर इन स्नो सूट्स की खराब गुणवत्ता के बारे में बता चुके थे। (दैनिक भास्कर के पास इन पत्रों की कॉपी मौजूद है।)
रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड को 2017 में दोबारा टेंडर मिलना सिर्फ इसलिए ही हैरान नहीं करता क्योंकि इस कंपनी की शिकायत लगातार आ रही थी या इसके उत्पाद सेना की आंतरिक जांच में खराब पाए गए थे। बल्कि यह इसलिए भी हैरान करता है क्योंकि इस बार मास्टर जनरल ऑर्डिनेन्स (भारतीय सेना) के सामने इस कंपनी को टेंडर देने से बेहतर विकल्प मौजूद थे। जहां एक तरफ रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड 2010 के बने ‘स्नो सूट’ (एक्सट्रीम कोल्ड वेदर क्लोदिंग सिस्टम) की कीमत 285 डॉलर प्रति सूट लगा रही थी वहीं एक अन्य कंपनी ने 2017 के बने आधुनिक स्नो सूट की कीमत 278 डॉलर प्रति सूट तय की थी।
यानी इस दूसरी कंपनी के स्नो सूट रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड की तुलना में न सिर्फ आधुनिक और अपग्रेडेड थे बल्कि इनकी कीमत भी आठ डॉलर प्रति सूट कम थी। इसके साथ ही जहां रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड अपने उत्पादों की डिलिवरी के लिए 240 दिनों का समय मांग रही थी वहीं दूसरी कंपनी 180 दिनों में ही यह डिलिवरी देने को तैयार थी। इन तमाम तथ्यों के बावजूद भी रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड को तीस हजार स्नो सूट का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया गया। इसके चलते सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। आगे चलकर सेना के आंतरिक ऑडिट में यह तथ्य पकड़ में आया और साल 2018 में इसकी आधिकारिक जांच शुरू हुई।
रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड की गड़बड़ियों से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य और भी है। साल 2017 में अपने जिस स्नो सूट की कीमत इस कंपनी ने 285 डॉलर रखी थी, वही सूट ये कंपनी साल 2012-13 से भारत सरकार को 384 डॉलर का बेचते आ रही थी।
यानी सालों से रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड अपने सूट को जिस दाम पर बेच रही थी, 2017 में अचानक उसी सूट को सीधा सौ डॉलर प्रति सूट कम के दाम पर बेचने को तैयार हो गई। यह तथ्य सीधे तौर से सत्यजीत द्वारा उठाई गई उन शिकायतों को बल देता है जिनका जिक्र अपने पत्र में करते हुए उन्होंने लिखा था कि रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड निम्न गुणवत्ता के स्नो सूट बहुत भारी दामों पर भारतीय सेना को बेच कर चूना लगा रही है।
सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र भी कहा जाता है। बीते तीन दशकों में यहां तैनात सैकड़ों जवान सिर्फ यहां के मौसम के चलते ही अपनी शहादत दे चुके हैं। माइनस 50 डिग्री तक गिर जाने वाले तापमान में तैनात जवानों को यहां असल लड़ाई पड़ोसी देश के सैनिकों या घुसपैठियों से नहीं बल्कि मौसम से ही लड़नी होती है।
ऐसे में इन जवानों के लिए आधुनिक उपकरण और अत्यधिक ठंड में भी शरीर को गर्म रखने वाले ‘स्नो सूट’ ही बचाव का सबसे मजबूत हथियार होते हैं। इन उपकरणों की गुणवत्ता से कोई भी समझौता सीधे-सीधे जवानों की जिंदगी से खिलवाड़ करने जैसा है। लेकिन भास्कर की यह पड़ताल बताती है कि हमारे जवानों की जिंदगी से यह खिलवाड़ बीते कई सालों से लगातार किया जा रहा है।
रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड की गड़बड़ियों का खुलासा सबसे पहले सत्यजीत ने साल 2015 में रक्षा मंत्रालय को पत्र लिख कर किया था। लेकिन इसके बाद से कई सांसद और भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली कई संस्थाएं भी इस बारे में रक्षा मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय तक को चेतावनी दे चुकी हैं। सांसद पप्पू यादव से लेकर रीता बहुगुणा जोशी और ‘ट्रान्स्पेरेन्सी इंटरनेशनल इंडिया’ तक इस बारे में रक्षा मंत्रालय को लिख चुका है।
इस मामले के शिकायतकर्ताओं में शामिल रहे एक व्यक्ति कहते हैं, "रेनवियर जैसी कंपनियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में सरकार कांग्रेस की है या भाजपा की। हर सरकार में इन बड़ी कंपनियों की जबरदस्त पैठ होती है। कांग्रेस सरकार में भी यह कंपनी कॉन्ट्रैक्ट पा रही थी और इस सरकार में भी पा रही है। कोई आश्चर्य नहीं अगर इतनी शिकायतें और गड़बड़ियों के बाद भी भविष्य में इसी कंपनी को फिर से कॉन्ट्रैक्ट दे दिया जाए।"
(इस पूरे मामले में दैनिक भास्कर ने रक्षा मंत्रालय और मास्टर जनरल ऑर्डिनेन्स (एमजीओ) से उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया।)
(एस सत्यजीत बदला हुआ नाम है। शिकायतकर्ता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भास्कर उनका असली नाम प्रकाशित नहीं कर रहा है)
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