हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा करने की परंपरा है। नारदपुराण के अनुसार ये पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान देने और कर्तव्य बताने वाले गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 5 जुलाई रविवार को है। गुरु पूर्णिमा पर केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े भाई-बहन या किसी सम्माननीय व्यक्ति को गुरु मानकर उनकी भी पूजा की जा सकती है। इस पर्व को अंधविश्वासों के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए इस पर्व पर भीड़ में जाने से बचना चाहिए। इसके लिए आपको घर पर ही गुरू पूजा करनी चाहिए।
व्रत और विधान
- गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी नहाकर पूजा करके साफ कपड़े पहनकर गुरु के पास जाना चाहिए।
- गुरु को ऊंचे आसन पर बैठाकर फूलों की माला पहनानी चाहिए।
- इसके बाद कपड़े, फल, फूल और फूल चढ़ाकर श्रद्धा अनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजा करने से गुरु का आशीर्वाद मिलता है।
- गुरु पूर्णिमा पर वेद व्यासजी द्वारा लिखे ग्रंथों को पढ़ना चाहिए और उनके उपदेशों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करें उसके बाद नहाकर साफ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान पर पटिए पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर चंदन से 12 सीधी और 12 आड़ी रेखाएं खींचकर व्यास-पीठ बना लें।
- इसके बाद गुरू पूज के लिए संकल्प लेना चाहिए। और दसों दिशाओं में चावल छोड़ना चाहिए।
- फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम लेकर उन्हें प्रणाम करें और पूजन सामग्री से पूजा करें।
- इसके बाद अब अपने गुरु या उनके चित्र की पूजा करके श्रद्धाअनुसार दक्षिणा देना चाहिए।
- आखिरी में गुरु पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद बांट दें।
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