सरयू पूरे उफान पर है। प्रवाह इतना तेज और लहरों लहर फैला है कि उस पार किनारा नहीं दिखता। बचपन से सरयू किनारे ठेला लगाने वाले हों या संभावनाशील कारोबारी, उनकी आंखाें में नई चमक है।
युवाओं को साफ दिख रहा है कि मंदिर से जुड़ी राजनीति चाहे जो भी हो, अयोध्या अब हरिद्वार और तिरुपति को पीछे छोड़ने जा रही है। हालांकि, राम मंदिर के आसपास के इलाके के लोगों के चेहरों पर पुनर्निर्माण के दौरान टूट-फूट का डर भी साफ पढ़ा जा सकता है। लेकिन, नई पीढ़ी को लगता है कि उनका भविष्य बेहतर होने जा रहा है।
होटल कारोबारी के अनिल अग्रवाल कहते हैं- 2000 से ज्यादा नए होटल खुलने की संभावना तो है ही, यहां की रेलवे कनेक्टिविटी बढ़ने, एयरपोर्ट बनने और पर्यटन के समृद्ध होने की अपार संभावनाएं हैं। राम नवमी या दिवाली पर यहां विश्वभर से यात्री जुटेंगे। सरयू की महिमा पहले ही इतनी है कि यहां सावन में एक-एक दिन 15-15 लाख लोग जुटते हैं। पिछले साल 2 करोड़ पर्यटक आए थे।
श्रीराम पौड़ी से नया घाट तक पूरी अयोध्या सज रही
श्रीराम पाैड़ी और नया घाट से लेकर रामलला के मंदिर तक पूरी अयोध्या सज रही है। उसकी धज पहले की तुलना में अब इतनी अलग है कि बेहद पुरानी और औसत सी लगने वाली यह धार्मिक-ऐतिहासिक नगरी अब सनातन धर्म का प्रमुख तीर्थ बनने के लिए अंगड़ाइयां तोड़ती लग रही है। हालांकि, इसमें हिंदुत्व की राजनीति भी नींव पूजन के माध्यम से नए उफान का संकेत दे रही है।
यह अयोध्या उस अवध से अलग है, जिसके बारे में कभी नजीर बनारसी ने कहा था- काली बलाएं सर पर पाले, शाम अवध की डेरा डाले, ऐसे में कौन अपने को संभाले, मेरा निवास स्थान यही है, प्यारा हिंदोस्तान यही है! अयोध्या में आप जहां भी जाएंगे, पीले रंग की पुताई का काम दिखेगा। पीले रंग वाले इन भवनों के सब दरवाजे भगवा हो रहे हैं।
बदलाव दिखने लगा है
राम की पाैड़ी, नया घाट, कनक भवन मंदिर और मुख्य मार्गों पर एक बदलाव साफ दिख रहा है। कल तक अयोध्या के जो क्षेत्र वीरान और गर्दों गुबार से ढके थे, वे अब बोलते घर हो गए हैं। ऐसे घर, जिनके आंगन में मोदी-योगी की राजनीति भी आकार लेगी! हालांकि, कोरोना के कारण सब जगह घबराहट है।
फिर भी देशभर से तीर्थ यात्री अयोध्या आ रहे हैं। अयोध्या से सटे फैजाबाद में राजकोट के गोविंद भाई मेहता बताते हैं कि वे बचपन से अयोध्या आ रहे हैं। पहले यह बड़ा चुप और सूना-सूना शहर था, लेकिन अब इसकी तासीर बदल रही है। वे एक कविता गुनगुनाते हैं- लौट आओ जो कभी राम की सूरत तुम तो! मन का सुनसान अवध दीप नगर हो जाए! वे कहते हैं, पूरे परिवार के साथ दीपोत्सव में दीप जलाने आए हैं। यहां लोग कहते हैं कि राम मंदिर बन जाएगा, अच्छा है।
मन की मुराद पूरी हो जाएगी, लेकिन अभी तो कोरोना के कारण अवध के चमन से चहक गायब और महक नदारद है! अलबत्ता, सियासत के दरिया में ज़रूर मौजें उठ रही हैं। खासकर भाजपा और हिंदुत्व के बादल इस सावन में गरज और बरस रहे हैं! जगह-जगह लगे बड़े-बड़े होर्डिंग इसी इबारत को बांच रहे हैं।
तिरुपति से समझिए कि एक धर्मस्थल पूरे इलाके को कैसे बदल सकता है
आंध्रप्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में 21 हजार कर्मचारी हैं। राेज 65 हजार श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की धर्मशालाओं के अलावा शहर में 800 से ज्यादा होटल हैं, जो श्रद्धालुओं पर ही निर्भर हैं। इन होटलों में हजारों कर्मचारी हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 20 हजार से ज्यादा ऑटो-टैक्सियां चलती हैं।
धर्मस्थल होने की वजह से यहां दशकों से अरबों रुपयों के विकास कार्य हो चुके हैं। 1 हजार से ज्यादा दुकानें-रेस्त्रां श्रद्धालुओं के दम पर चल रही हैं। इलाके के 2 लाख परिवारों की आमदनी सीधे तौर पर श्रद्धालुओं-पर्यटकों पर निर्भर है।
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Source From
RACHNA SAROVAR
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