सावन मास में शिव भक्ति के साथ ही भगवान शिव की कथा सुनने का भी महत्व है। शिव पुराण में भगवान शिव के कई प्रसंग हैं। उनके 19 अवतारों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही किस-किस को भगवान ने क्या-क्या वरदान दिए ये भी कथाएं हैं। सावन के पहले दिन भगवान शिव की तीन छोटी-छोटी कथाएं यहां प्रस्तुत हैं।
- भगवान शिव के पसीने से अंधक का जन्म
एक भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। एक बार शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे। उसी समय पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। जैसे ही माता पार्वती के हाथों का स्पर्श भगवान शिव के शरीर पर हुआ, वैसे ही भगवान शिव के सिर से पसीने की बूंदें गिरने लगीं। उन पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ।
उस बालक का मुंह बहुत बड़ा था और भंयकर था। उस बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से वह बालक अंधा था। इसलिए, उसका नाम अंधक रखा गया। कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया।
- भगवान शिव ने ली थी पार्वती की परीक्षा
शिवपुराण में दिए गए एक प्रसंग के अनुसार, पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। जिसके लिए पार्वती कई वर्षों से कठोर तपस्या कर रही थी। माता पार्वती की तपस्या देखकर भगवान शिव उनकी भक्ति पर प्रसन्न थे, लेकिन भगवान शिव उनके प्रेम की परीक्षा लेना चाहते थे। परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव एक ब्राह्मण का रूप धारण करके माता पार्वती के आश्रम में गए। जहां देवी पार्वती तपस्या कर रही थी। पार्वती को तपस्या करते देख ब्राह्मण रूपी भगवान शिव ने माता से इतनी कठोर तपस्या करने का कारण पूछा।
ब्राह्मण के ऐसा पूछने पर पार्वती ने उन्हें बताया कि वे भगवान शिव को अपने पति रूप में पाना चाहती है। उन्हीं को पाने के लिए वे तपस्या कर रही है। माता पार्वती के ऐसा कहने पर ब्राह्मण रूपी शिव माता पार्वती के सामने भगवान शिव की निन्दा करने लगे। ब्राह्मण के मुंह से भगवान शिव की निन्दा सनने पर माता पार्वती ने ब्राह्मण की बातों का विरोध किया भगवान शिव के गुणों का वर्णन किया। माता पार्वती के ऐसा करने पर भगवान शिव उन पर बहुत प्रसन्न हुए और माता पार्वती को अपने शिव रूप के दर्शन दिए। साथ ही देवी पार्वते को ही अपनी पत्नी बनाने का वरदान भी दिया।
- भगवान शिव से युद्ध में हार गया था अर्जुन
शिवपुराण की ही एक कथा और है। महाभारत के पांडव काम्यक वन में अपना वनवास बीता रहे थे। वही उनकी मुलाकात महर्षि वेदव्यास से हुई। महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन को भगवान शिव की तपस्या करके, उनसे पाशुपतास्त्र और दिव्यास्त्र लेने को कहा। महर्षि के आदेश पर अर्जुन घने जंगल में भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने लगा। अर्जुन की तपस्या की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक भील का रूप धारण कर लिया। भील रूपी शिव ने अर्जुन के पराक्रम का बहुत अपमान किया। भील द्वारा अपने पराक्रम का अपमान कए जाने पर अर्जुन ने उसे युद्ध करने को कहा।
अर्जुन ने ऐसा करने पर भील रूपी भगवान शिव और अर्जुन के बीच घोर युद्ध हुआ। युद्ध में भील ने अर्जुन को हरा दिया और उसका धनुष गांडीव भी छीन लिया। भील के वार से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ा। होश आने पर वह फिर से भगवान शिव की तपस्या करने लगा। अर्जुन की भक्ति और लगन से खुश होकर भगवान शिव ने उसे अपने शिव रूप के दर्शन दिए। साथ ही वरदान स्वरूप भगवान सिन ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र और कई दिव्यास्त्रों की शिक्षा भी दी।
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