6 जुलाई से सावन माह शुरू हो गया है। लेकिन, इस साल कोरोना के चलते उत्तराखंड के केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में सावन के पहले दिन 200 से भी कम लोग पहुंचे। जबकि, पिछले साल यह आंकड़ा लगभग 10 हजार था। उत्तराखंड सरकार ने 1 जुलाई से राज्य के लोगों के लिए यहां के चारों धाम की यात्रा शुरू कर दी है। दर्शन करने के लिए चारधाम देवस्थानम् बोर्ड की वेब साइट पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है।
केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित समिति के अध्यक्ष पं. विनोद प्रसाद शुक्ला ने बताया कि हर बार सावन माह में यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन, इस बार मंदिर के आसपास की लगभग सभी दुकानें और होटल्स बंद हैं, गिनती के लोग दर्शन करने पहुंच रहे हैं, कावड़ यात्रा भी बंद है। मंदिर में यहां के पुजारी नियमित की जाने वाली सभी पूजा पूरे विधि-विधान से कर रहे हैं। इनके अलावा प्रशासन के कुछ लोग ही दिनभर रहते हैं। 2013 के केदारनाथ हादसे के बाद इस साल महामारी की वजह से मंदिर तक भक्त नहीं पहुंच रहे हैं।
एक दिन में अधिकतम 800 लोग कर सकते हैं दर्शन
देवस्थानम् बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि 1 जुलाई से दर्शन व्यवस्था शुरू हुई है। 1 से 6 जुलाई के बीच 286 लोगों ने ऑनलाइन पूजा बुक की है। 1 जुलाई से अब तक केदारनाथ के दर्शन के लिए राज्य के करीब 1200 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। जबकिचारों धाम के दर्शन के लिए 6 दिनों मेंकरीब 5 हजारई-पास जारी किए गए हैं। केदारनाथ में एक दिन में अधिकतम 800 लोगों को दर्शन कराने की व्यवस्था की गई है, लेकिन अभी काफी कम लोग यहां पहुंच रहे हैं।
सरकारी गेस्ट हाउस खुले हैं
यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सरकारी गेस्ट हाउस खुले हैं। लेकिन, लगभग सभी भक्त अपने निजी वाहन से केदारनाथ पहुंच रहे हैं और दर्शन करके अपने शहर की ओर लौट जाते हैं। यात्रियों को गेस्ट हाउस में एक दिन रुकने की अनुमति दी गई है, विशेष परिस्थितियों में ज्यादा दिन भी रुक सकते हैं।
पौराणिक महत्व:नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न हुए थे शिवजी
शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में बताया गया है कि बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। उनकी भक्ति से शिवजी हुए और वर मांगने को कहा। तब नर-नारायण ने वर मांगा कि शिवजी हमेशा इसी क्षेत्र में रहें। शिवजी ने यहीं रहने का वर दिया और कहा कि ये जगह केदार क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध होगी। इसके बाद शिवजी ज्योति स्वरूप में यहां स्थित शिवलिंग में समा गए।
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