
माघ महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी मनाई जाती है। इसी के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान भैरव की पूजा की जाती है। इस बार सावन महीने में कालाष्टमी 12 जुलाई को है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है। भगवान शिव ने बुरी शक्तियों को मार भागने के लिए रौद्र रुप धारण किया था। काल भैरव इन्हीं का स्वरुप है। इसलिए शिव पूजा के पवित्र महीने सावन में कालाष्टमी पर पूजा और व्रत करने का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान भैरव जी की पूजा और व्रत किया जाता है। इस व्रत में भगवान काल भैरव की उपासना करते हैं। इससे नकारात्मकता और कष्ट दूर हो जाते हैं।
कालाष्टमी व्रत विधि
- नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
- इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को आधी रात के बाद उसी तरह पूजा करनी चाहिए, जिस प्रकार नवरात्रि में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है।
- इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए।
- व्रत करने वाले को फलाहार ही करना चाहिए।
- कालभैरव की सवारी कुत्ता है इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।
कालभैरव पूजा से दूर हो जाते हैं कष्ट
कालाष्टमी के दिन व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की कथा के साथ भजन करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। साथ ही कालभैरव की कथा सुननी चाहिए। कालाष्टमी के दिन भैरव पूजन से बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं। मान्यता के अनुसार भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है। इस दिन काले कुत्ते को रोटी जरूर खिलानी चाहिए। कालाष्टमी पर किसी पास के मंदिर जाकर काल भैरव के सामने दीपक जरूर जलाना चाहिए। कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि -विधान से कालभैरव की पूजा करने से कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसे लोगों से काल दूर हो जाता है। इसके अलावा बीमारियां भी दूर होती हैं और उसे हर काम में सफलता मिलती है।
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