चुनावी सर्वे में पिछड़ने के बाद ट्रम्प ने खेला अप्रवासी विरोधी कार्ड, वर्क वीजा, एच-1बी जैसे फैसले से अश्वेतों को खुश करने की कवायद

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चुनावी मूड में आ गए हैं। बीते माह के सर्वे और पोल में घटती लोकप्रियता के बाद ट्रम्प ने अपना अप्रवासी विरोधी कार्ड चल दिया है। इसी के दम पर वे सत्ता में पहुंचे थे। इस कड़ी में पहले ट्रम्प ने वर्क वीजा, एच-1बी वीजा और फिर ऑनलाइन क्लास लेने वाले छात्रों को देश छोड़ने का फरमान सुनाया है।

इस आदेश से एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करने वाले 4 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। जानकार बताते हैं कि कई सर्वे और पोल बताते हैं कि ट्रम्प अपने अप्रवासी विरोधी आधार वोटरों के बीच लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। साथ ही डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बिडेन से भी पिछड़ रहे हैं।

इसने ट्रम्प की कैंपेन टीम की बैचेनी बढ़ा दी है। ट्रम्प ने खुद व्यक्तिगत रूप से घटती लोकप्रियता को उस समय महसूस किया, जब तुलसा में उनकी चुनावी रैली फ्लॉप रही। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस रैली में 10 लाख से ज्यादा लोगों के जुटने का दावा किया था।

लेकिन, उनकी प्रचार टीम के साथ कहासुनी हो गई, जब रैली में सिर्फ 6,200 लोग ही पहुंचे। न्यूजर्सी स्थित ड्रू यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर संजय मिश्रा बताते हैं कि आईसीई आदेश विनाशकारी है और ट्रम्प के अप्रवासी विरोधी नजरिए को दर्शाता है।

बड़ी संख्या में छात्रों को देश छोड़ना पड़ेगा

ट्रम्प के इस आदेश ने छात्रों को अधर में डाल दिया है। बड़ी संख्या में छात्रों को देश छोड़ना पड़ेगा और जो देश के बाहर हैं, उनके सामने वीजा मिलने की अनिश्चिताएं बढ़ गई हैं। साथ ही ट्रम्प प्रशासन विश्वविद्यालयों पर अगस्त से स्कूल खोलने का दबाव डाल रहा है, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि हालात नॉर्मल हो रहे हैं।

हॉर्वर्ड समेत कई संस्थाएं कोरोना की वजह से सुरक्षा कारणों के चलते अगले शैक्षणिक साल में ऑनलाइन क्लास की घोषणा कर चुके हैं। इसलिए, छात्र असहाय हैं क्योंकि यह उनका निर्णय नहीं है। दूसरी तरफ हाॅर्वर्ड और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के नेतृत्व में एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों ने आदेश को रोकने के लिए अदालत का रुख किया है।

हाॅर्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेंट लैरी बैको कहते हैं कि हमारा विश्वास है कि यह पॉलिसी बेहद खराब होने के साथ ही गैरकानूनी भी है। यह हाॅर्वर्ड जैसे कई संस्थाओं के सोचे-समझे नजरिए को नजरअंदाज करता है, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी अपना अध्ययन स्वस्थ और सुरक्षित रहते हुए इस महामारी में जारी रख सकते हैं।

बैको कहते हैं कि हम इस मुद्दे को पूरी ताकत से बढ़ाते रहेंगे ताकि विदेशों से आए हमारे ही नहीं बल्कि देशभर की सारी संस्थाओं में डिपोर्ट से डरे बिना छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। दिलचस्प है कि मैसाचुसेट्स राज्य ने ट्रम्प सरकार पर केस करने की अपनी योजना उजागर कर दी है और वे इस आदेश को क्रूर और गैरकानूनी मानते हैं।

कोलंबिया और बर्केले यूनिवर्सिटी ने हाइब्रिड मॉडल अपनाया है, जिसके तहत प्रत्यक्ष और ऑनलाइन दोनों ही माध्यम से पढ़ाई जारी रहेगी। ब्राउन यूनिवर्सिटी में 18% छात्र विदेशी हैं। उसने भी इस आदेश को क्रूर बताते हुए कहा कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है।

वहीं, राष्ट्रपति ट्रम्प चाहते हैं कि सारे विश्वविद्यालय, स्कूल और कॉलेज अगस्त में खुल जाएं और उन्होंने धमकी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे इन संस्थाओं में सरकारी अनुदान रोक देंगे। व्हाइट हाउस में एक कार्यक्रम में ट्रम्प ने कहा कि हम सारे गवर्नर और सारे संबंधित लोगों पर दबाव डालेंगे ताकि स्कूल जल्द से जल्द खुलें।

अमेरिकी इकोनॉमी में विदेशी छात्रों का योगदान 3 लाख करोड़ रु. का

द इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने 2018 में अमेरिकी इकोनॉमी में 45 अरब डॉलर (करीब 3.3 लाख करोड़ रु.) का योगदान दिया। ग्लोबल एजुकेशन एडवोकेसी ग्रुप नाफ्सा के मुताबिक 2018-19 शैक्षणिक वर्ष में 4,60,000 नौकरियों में भी सहयोग दिया।



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ट्रम्प प्रशासन  विश्वविद्यालयों पर अगस्त से स्कूल खोलने का दबाव डाल रहा है, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि हालात नॉर्मल हो रहे हैं। -फाइल फोटो


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via RACHNA SAROVAR
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